स्वप्न मेरे

शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

देवता - पत्थर के ...

मैंने कहा तेरे सहारे जीना चाहता हूँ
वो होले से मुस्कुराई ओर चली गई

कहा था न मैंने ...
मुस्कुराते हैं पत्थर के देवता भी ...
#जंगली_गुलाब

शनिवार, 29 जून 2024

क़तरा - क़तरा ...

उठता तो ज़रूर है एक पत्थर कहीं से
आईना चटखने से पहले
फिर उस रोज़ तुमने भी तो देखा था
अंजान नज़रों से एक टक

दिल की अन-गिनत दरारों से
दर्द टपकता है बे-हिसाब क़तरा – क़तरा ...

रविवार, 16 जून 2024

तिल, प्रेम और आइना ...

लगातार गहरा होता
ये जो बड़ा से तिल है तुम्हारे चेहरे पर
निशानी है प्रेम की

मेरी जाना, वक़्त के साथ जरूरी तो नहीं
प्यार का इज़हार करते रहना
कभी आइना भी तो देख लिया करो ...
#जंगली_गुलाब 

शनिवार, 25 मई 2024

कचरा ज़िन्दगी का ...

समय से पहले
समय से आगे निकल जाने का जूनून
पा लेने की जद्दोजहद

समेटता गया सब कुछ ज़िन्दगी की नाव में
समझ नहीं सका जरूरी है इतनी जगह का होना
की सहेज सकूँ लूटी हुयी पतंगों के माँझे
गुलाब के सूखे फूल, भीगते लम्हे के किस्से
खुशियों की गुल्लक, यादों के मर्तबान

आज उम्र के इस पड़ाव पर
जबकि इच्छाओं का अंत नज़र आने लगा है
कुछ नहीं बाकी सुविधाओं के अलावा, भौतिक सुख के इतर

ज़िन्दगी के लम्बे सफ़र में जरूरत होती है उन सब चीज़ों की
छोड़ देते हैं जिन्हें हम कचरे का ढेर समझ कर ...

शनिवार, 18 मई 2024

ज़िन्दगी ...

दौड़ें इतना कि खुद के करीब आ जाएँ
सुने अपने दिल की धड़कन
महसूस करें अपनी गर्म साँसें
कि उनके नाम से जीते रहना ज़िन्दगी तो नहीं

सो जाओ तुम ...
नहीं आ सकोगी ख़्वाबों में
कसम ली है आँखों ने रात भर न सोने की
तुम्हारे अलावा भी तिलिस्मी है ये ज़िन्दगी ...
#जंगली_गुलाब

शनिवार, 11 मई 2024

मौसम ...

सावन
कितना अजीब है ये मौसम
बूंदों के साथ उतर जाते हैं दिन धरती पर 

हरी शाल ओढ़े ज़मीन हो उठता मन
करता है चहल कदमी यादों की बेतरतीब घास पर

समय की करवट जाने अनजाने ले आती है सैलाब
कीचड़ होता प्रेम डूब जाता है नाले में
उठती है अजीब सी जिस्मानी गंध

कितनी मिलती जुलती है ये गंध
मन के तहखाने में छुपे प्रेम की खुशबू से

कितना चालबाज है मौसम
आती बारिश के साथ खेलता है खेल प्रेम के
#जंगली_गुलाब 

मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

विश्वास ...

तूफान के साथ सब कुछ उजड़ गया सिवाए प्रेम के
पूरब की किरणों के साथ लौटने लगी घास, खिलने लगे फूल
लौट आया सफ़ेद बादलों का कारवाँ

इन्द्र-धनुष के रंग भी खिलने लगे समय के साथ
कितना जरूरी है प्रेम और प्रेम पर विश्वास होना

शनिवार, 30 मार्च 2024

तुम्हारी कविता ...

तुमने कहा लिखो कविता मेरे पर
चली गयीं फिर दूर, चाहे कुछ पल के लिए

हालांकि तुम जानतीं थीं
मेरी हर कविता तुमसे शुरू हो कर
खत्म होती है तुम पर

शब्दों का सैलाब उमड़ता तो है, पर बिखर जाता है
तेरी हथेली की मज़बूत दीवार के आभाव में

मैं जानता हूँ जब तुम आओगी तो समेट लोगी
सँवार लोगी सभी शब्द करीने से
बुन लोगी कविता जो बिखरी पड़ी है
हमारे घर के जाने पहचाने जर्रों के बीच

फिर ये जंगली गुलाब भी तो महकने लगा है ...
#जंगली_गुलान

शनिवार, 16 मार्च 2024

लौटना पंछी का ...

रोज़ देखता हूँ खिड़की के झरोखे से 
सूखी टहनी से लटके बियाबान घौंसले की उदासी
महसूस करता हूँ बाजरे के ताज़ा दानों की महक

रह रह के झाँकती है इक रौशनी वहाँ से
सुबुकता होगा कोई जुगनू, शायद किसी की याद में

हवा की हथेली पे लिखा सन्देश
न लौट के आने वाले पंछी ने देखा तो होगा ...

शनिवार, 9 मार्च 2024

शहर - जो गुज़र गया

मुद्दतों बाद उन रास्तों से गुज़रा
जिसकी हर शै में गंध रहती थी ज़िन्दगी की

लगभग मिटटी हो गयी सड़क पर
पीली रौशनी का बल्ब तो वहीं खड़ा है
पर अब इक उदासी सी घिरी रहती है उसके इर्द-गिर्द

अरावली की सपाट चट्टानें
जिस पर लिखते थे कभी अपना नाम
खोखली हो चुकी हैं समय के दीमक से

नुक्कड़ का खोखा जहाँ तन्दूर ठण्डा नहीं होता था
आखरी साँस के साथ खड़ा हैं गिरने की प्रतीक्षा में

माना ये सच है
जाने वाले के साथ सब कुछ खत्म तो नहीं होता
पर पता नहीं क्यों दूर-दूर तक फैला मरुस्थल
लील चूका है पूरा इतिहास

सुना था शहर कभी मरते नहीं
तो क्या पसरे हुवे सन्नाटे की साँसों को
किसी जानी पहचानी आहट का इंतज़ार है ...