स्वप्न मेरे

सोमवार, 27 नवंबर 2023

ताव दे कर बोलती है देख अब मेरी तड़ी ...

है नहीं परवाह तुमको धूप में हूँ मैं खड़ी. 
पोंछ कर चेहरे को ग़ुस्से में वो मुझसे लड़ पड़ी.

मुझसे टकरा कर कहा कुछ तो मगर मुझको लगा,
बज रही को कान में जैसे पटाखों की लड़ी.

उठने लगती है तो मन करता अब ये कर ही दूँ,
पाँव में बेड़ी लगा दूँ, हाथ में ये हथकड़ी.

देख मत लेना भरी आँखों से तुम आकाश को,
वर्ना ये बादल लगा देते हैं बूँदों की झड़ी.

रश है कितना मैंने बोला देख लेंगे बाद में,
पर वो पहले दिन के, पहले शो पे है, अब तक अड़ी.

मग से कॉफ़ी के मेरे तितली ने आकर सिप लिया,
सामने बैठी हुई मासूम लड़की हंस पड़ी.

यक-ब-यक इक बात पर गुस्सा हुई फिर मूंछ पर,
ताव दे कर बोलती है देख अब मेरी तड़ी.

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

कह-कहे फ़्री में तोल देता है …


पोल ऐसे ही खोल देता है.
वो कहीं कुछ भी बोल देता है.

सोच लो कम-से-कम है क्या क़ीमत,
वो तो कोड़ी का मोल देता है.


टू-द-पॉइंट जवाब दूँ कैसे,
प्रश्न जब गोल-गोल देता है.

कौन सी चैट है ख़ुदा जाने,
लोल के बदले लोल देता है.

वो मदारी है विष फ़िज़ाओं में,
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ घोल देता है.

वो प्रजातंत्र का है निर्देशक,
चुप ही रहने का रोल देता है

है तो मुश्किल मगर वो दुख ले कर,
कह-कहे फ्री में तोल देता है.

सोमवार, 6 नवंबर 2023

वज़ह प्रेम की …

उँगलियों में चुभे कांटे
इसलिए भी गढ़े रहने देता हूँ
की हो सके एहसास खुद के होने का

हालाँकि करता हूँ रफू ... जिस्म पे लगे घाव
फिर भी दिन है की रोज टपक जाता है ज़िन्दगी से

उम्मीद घोल के पीता हूँ हर शाम
कि बेहतर है सपने टूटने से
उम्मीद के हैंग-ओवर में रहना


सिवाए इसके की खुदा याद आता है
वज़ह तो कुछ भी नहीं तुम्हें प्रेम करने की

और वजह जंगली गुलाब के खिलने की ...?
ये कहानी फिर कभी ...

सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

प्रेम ...

दूर तक रेत पर
नहीं गिरी थीं बारिश की बूँद
पर थी मिट्टी की सोंधी महक
छू रहा था बदन को
नमी का गहरा एहसास ...

जाने पहचाने
ताज़ा क़दमों के निशान
बेतरतीब बिखरे पड़े थे
पीले समुंदर की
ठहरी हुई लहरों पर ...

क्या सच में प्रेम वहाँ रोता है
जहां कोई नहीं होता ...

बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

आते आते रात शाम ढल गई ...

तप्सरों की केतली उबल गई.
बात कानों कान जब निकल गई.

क्यों हुआ कभी हुआ नहीं पता,
उनको देखते ही आँख चल गई.

हम अना के हाथ ऐंठते रहे,
पाँव पाँव ज़िन्दगी फिसल गई.

बुझते बुझते जल उठी मशाल जब,
आँधियों में एक बस्ती जल गई.

देर से मगर इसे समझ गया,
आग तेज़ हो तो दाल गल गई.

लोन क्या लिया किसी किसान ने,
देखते ही देखते फसल गई.

मैं निकल गया था घर की ओर पर,
आते आते रात शाम ढल गई.

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ ...

विस्तार प्रेम का हूँ प्रेम पाश नहीं हूँ.
गंतव्य मुझको मान लो तलाश नहीं हूँ.

तुम ओढ़ कर ये धूप हमको मिलने न आना,
इक रात सुरमई सी हूँ प्रकाश नहीं हूँ.

विस्मृत न कर सकोगे आप प्रेम के लम्हे,
काँटा गुलाब का हूँ मैं पलाश नहीं हूँ.

कुछ पल हमारे साथ ठीक-ठाक हैं लेकिन,
मैं भाग्य को बदल दूँ ऐसी ताश नहीं हूँ.

शिव सा अनंत विष का कंठ पान किया है,
निर्माण लक्ष्य है मेरा विनाश नहीं हूँ.

माना के स्वीकृति मिली न प्रेम की अब तक,
विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ.

शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2023

खास दिन ...

सृष्टि ने जब कुछ देना है तो वो दे देती है, क्योंकि इंसान के जीवन में हर सजीव हर लम्हा उस कायनात का दिया हुआ ही तो है … ये दिन, ये महूरत … सब इंसानी बाते हैं … पर हम भी तो इंसान हैं … तो क्यों न दिन को खास मानें …

वक़्त की टहनियों पे टंगे प्रेम के गुलाबी लम्हे
संदली ख़ुशबू का झीना आवरण ओढ़े
सजीव हो उठते हैं सूरज की पहली किरण के साथ ...

ताज़ा हवा के झौकों के साथ
कायनात में खिलने लगते हैं जंगली गुलाब
कहीं मुखर हो जाते हैं डायरी में बन्द सूखे फूल जैसे

कहीं सादगी से पलकें झुकाए
तो कहीं आसमानी चुन्नी में महकते
जुड़ जाते हैं तमान ये लम्हे उम्र के हसीन सफ़र में

सच कहूँ ...
तुम ही तो मेरे एहसास का जंगली गुलाब हो
पुरानी डायरी का सूखा फूल
जागती आँखों का पहला ख़्वाब
देखा है जिसे ज़िन्दगी बनते बरसों पहले, तुम्हारे साथ ...
Love you Jana 🌹🌹🌹

#मद्धम_मद्धम 

शनिवार, 30 सितंबर 2023

उत्तर है इसके हल में ...

क्यों अटके बीते पल में.
जब सब आज है या कल में.

रब, रिश्ते, मय, इश्क़, नज़र,
फँस जाओगे दलदल में.

ठुठ्ररी ठुठ्ररी बैठी है,
रात सिकुड़ कर कम्बल में.

किसने कैसे बूँद रखी,
नील गगन के बादल में.

फूट रही थी गुमसुम सी,
एक जवानी पिंपल में.

जुगनू बन कर धूप छुपी,
काली रात के आँचल में.

खामोशी ख़ामोश रही,
सन्नाटों की हलचल में.

धूल सी यादें चिपकी हैं,
घर की हर इक चप्पल में.

मैल उतारी यूँ ग़म की,
मल मल कर शावर जल में.

जीवन सपने हाँ इक तितली,
उत्तर है इसके हल में.

सोमवार, 25 सितंबर 2023

माँ …

 वक़्त के साथ हर चीज़ धुंधली होती जाती है पर कुछ यादें ऐसी होती हैंजो जीवन भर साथ चलती हैं जैसे आपकी साँस… माँ भी उन्हीं में से एक है … या अगर सच कहूँ तो शायद वही एक है जो रहती है बातों मेंमिसालों मेंसोच मेंखाने मेंघूमने में … और भी  जाने किस-किस में … लगता नहीं आज ग्यारह साल हो गए तुझे गए … पर लगने से क्या होता हैहोतो गए हैं … समय पर किसका बस … 

धूप देह पर मद्धम-मद्धम होती है.

माँ की डाँट-डपट भी मरहम होती है.


आशा और निराशा पल-पल जीवन-रत,

माँ तो माँ है हर पल हर-दम होती है.


माँ का शीतल आँचल अंबर सा गहरा,

सुख-दुख मौसम शोला-शबनम होती है.


माँ ने उँगली पकड़ी तब कुछ समझ सके,

वरना राह सरल भी दुर्गम होती है.


आशाएँ-उम्मीदेंझट-पट बो देगी,

माँ हर पथ पर लय-सुर-सरगम होती है.


वक़्त पे खाना-पीनाअध्यनतैयारी,

माँ ख़ुद चलता-फिरता सिस्टम होती है.


ध्येय-समर्पणनित नव-चिंतनआजीवन,

कक्षा माँ की स्वयं-समागम होती है.

सोमवार, 18 सितंबर 2023

एक एहसास ...

सुबह की चाय में इलायची सी तुम,
दिन भर छूती हो ज़िस्म हवा की मानिंद,
रात होते ही उतर आती हो खुमारी सी,
करती हो चहल-क़दमी ख़्वाबों के बीच …
सुकूनी चादर सा तुम्हारा अहसास,
आसमानी शाल सा तुम्हारा विस्तार,
ज़िंदगी यूँ नहीं गुज़र रही लम्हा-लम्हा,
कुछ तो अच्छा लिखा था मेरे खातों में …
जिनकी एवज़ में तुम मिलीं.

बिगड़ते मौसम के वजूद से बचाने वाली …
यूँ ही मुझसे लिपट कर उम्र भर चलते रहना.