स्वप्न मेरे

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

पुन्य ...

चाहता हूँ अच्छे काम करना
की जब हो रहा हो हिसाब खातों का मेरे
बच सके कुछ पुन्य मेरे हिस्से में

मांगना चाहता हूं मैं तुमको इनकी एवज़ में ...
#जंगली_गुलाब

शनिवार, 7 सितंबर 2024

सिरफिरे ...

मत ढूंढना मेरे शब्दों में अपने किस्से
ओर प्रेमिका तो कभी नहीं
मैं नहीं चाहता बढ़ जाए सिरफिरों की गिनती

काँटों में न ढूँढने लग जाएँ जंगली गुलाब
टुकड़ों में न बंट जाए ये शहर …

#जंगली_गुलाब

सोमवार, 26 अगस्त 2024

जन्माष्टमी …

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की सभी को हार्दिक बधाई 
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सजा हुआ है आज फिर, कान्हा का दरबार,
अरजी पर शायद मेरी, चर्चा हो इस बार.


शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

देवता - पत्थर के ...

मैंने कहा तेरे सहारे जीना चाहता हूँ
वो होले से मुस्कुराई ओर चली गई

कहा था न मैंने ...
मुस्कुराते हैं पत्थर के देवता भी ...
#जंगली_गुलाब

शनिवार, 29 जून 2024

क़तरा - क़तरा ...

उठता तो ज़रूर है एक पत्थर कहीं से
आईना चटखने से पहले
फिर उस रोज़ तुमने भी तो देखा था
अंजान नज़रों से एक टक

दिल की अन-गिनत दरारों से
दर्द टपकता है बे-हिसाब क़तरा – क़तरा ...

रविवार, 16 जून 2024

तिल, प्रेम और आइना ...

लगातार गहरा होता
ये जो बड़ा से तिल है तुम्हारे चेहरे पर
निशानी है प्रेम की

मेरी जाना, वक़्त के साथ जरूरी तो नहीं
प्यार का इज़हार करते रहना
कभी आइना भी तो देख लिया करो ...
#जंगली_गुलाब 

शनिवार, 25 मई 2024

कचरा ज़िन्दगी का ...

समय से पहले
समय से आगे निकल जाने का जूनून
पा लेने की जद्दोजहद

समेटता गया सब कुछ ज़िन्दगी की नाव में
समझ नहीं सका जरूरी है इतनी जगह का होना
की सहेज सकूँ लूटी हुयी पतंगों के माँझे
गुलाब के सूखे फूल, भीगते लम्हे के किस्से
खुशियों की गुल्लक, यादों के मर्तबान

आज उम्र के इस पड़ाव पर
जबकि इच्छाओं का अंत नज़र आने लगा है
कुछ नहीं बाकी सुविधाओं के अलावा, भौतिक सुख के इतर

ज़िन्दगी के लम्बे सफ़र में जरूरत होती है उन सब चीज़ों की
छोड़ देते हैं जिन्हें हम कचरे का ढेर समझ कर ...

शनिवार, 18 मई 2024

ज़िन्दगी ...

दौड़ें इतना कि खुद के करीब आ जाएँ
सुने अपने दिल की धड़कन
महसूस करें अपनी गर्म साँसें
कि उनके नाम से जीते रहना ज़िन्दगी तो नहीं

सो जाओ तुम ...
नहीं आ सकोगी ख़्वाबों में
कसम ली है आँखों ने रात भर न सोने की
तुम्हारे अलावा भी तिलिस्मी है ये ज़िन्दगी ...
#जंगली_गुलाब

शनिवार, 11 मई 2024

मौसम ...

सावन
कितना अजीब है ये मौसम
बूंदों के साथ उतर जाते हैं दिन धरती पर 

हरी शाल ओढ़े ज़मीन हो उठता मन
करता है चहल कदमी यादों की बेतरतीब घास पर

समय की करवट जाने अनजाने ले आती है सैलाब
कीचड़ होता प्रेम डूब जाता है नाले में
उठती है अजीब सी जिस्मानी गंध

कितनी मिलती जुलती है ये गंध
मन के तहखाने में छुपे प्रेम की खुशबू से

कितना चालबाज है मौसम
आती बारिश के साथ खेलता है खेल प्रेम के
#जंगली_गुलाब