स्वप्न मेरे

शनिवार, 21 जून 2025

किरन जब खिलखिलाती है तेरी तब याद आती है …

ये सिगरेट-चाय-तितली-गुफ्तगू सब याद आती है.
तेरी आग़ोश में गुज़री हुई शब याद आती है.

इसी ख़ातिर नहीं के तू ही मालिक है जगत भर का,
मुझे हर वक़्त वैसे भी तेरी रब याद आती है.

मेरे चेहरे पे गहरी चोट का इक दाग है ऐसा,
ये दर्पण देख लेता हूँ तेरी जब याद आती है.

न थी उम्मीद कोई ज़िन्दगी से पर ये सोचा था,
न आएगी कभी भी याद पर अब याद आती है.

सफ़र आसान यूँ होता नहीं है ज़िंदगी भर का,
मुहब्बत में रहो तो दर्द की कब याद आती है.

किसी का अक्स जो तुम ढूँढती रहती हो बादल में,
कहूँ शब्दों में सीधे से तो मतलब याद आती है.

धरा पर धूप उतर आती है ले के रूप की आभा,
किरन जब खिल-खिलाती है तेरी तब याद आती है.

शनिवार, 14 जून 2025

उठा के हाथ में कब से मशाल बैठा हूँ ...

किसी के इश्क़ में यूँ सालों-साल बैठा हूँ.
में कब से दिल में छुपा के मलाल बैठा हूँ.

नहीं है कल का भरोसा किसी का पर फिर भी,
ज़रूरतों का सभी ले के माल बैठा हूँ.

मुझे यकीन है पहचान है ज़रा मुश्किल,
लपेट कर में सलीक़े से खाल बैठा हूँ.

उदास रात की स्याही से डर नहीं लगता,
हरा भी लाल भी ले कर गुलाल बैठा हूँ.

नहीं है इश्क़ तो फिर बोल क्यों नहीं देते,
बिना ही बात में वहमों को पाल बैठा हूँ.

कभी तो झुण्ड परिन्दों का फँस ही जाएगा,
बहेलिया हूँ में फैला के जाल बैठा हूँ.

मुसाफिरों से ये कह दो के अब निकल जाएँ,
उठा के हाथ में कब से मशाल बैठा हूँ.

शनिवार, 7 जून 2025

बारिश ...

शाम बारिश भोर बारिश.
कर रही है बोर बारिश.

तुम कहाँ जाओगी जाना,
हो रही घनघोर बारिश.

टप टपा टप, टप टपा टप,
शोर ही बस शोर बारिश.

मार डाले लोग कितने,
उफ़ ये आदम-खोर बारिश.

डूब जाए ना सभी कुछ,
पृथ्वी के हर छोर बारिश.

कुछ हवाएं चल रही हैं,
होगी अब कमज़ोर बारिश.

दिल भिगोया मिल गए हम,
या ख़ुदा चित-चोर बारिश.

शनिवार, 31 मई 2025

एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ ...

मुद्दतों से है तुम्हारी आँख में अटका हुआ.
ख्व़ाब है बदनाम आवारा मेरा भटका हुआ.

मखमली सी याद है के पाँव की दस्तक कोई,
दिल के दरवाज़े में हलके से कहीं खटका हुआ.

ढेर सारी नेमतें ख़ुशियाँ उसी में बन्द हैं,
ट्रंक बापू का कबाड़े में जो है पटका हुआ.

हम तरक्क़ी के नशे में छोड़ कर हैं आ गए,
प्रेम धागा घर के रोशन-दान में लटका हुआ.

गुफ़्तगू करते थे खुद से आईने के सामने,
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ.

गुरुवार, 15 मई 2025

उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे ...

चाहत यही है काश वो घर-घर दिखाई दे
वादी में काश्मीर में केसर दिखाई दे

ऐसा न काश एक भी मंज़र दिखाई दे
हाथों में हमको यार के खंजर दिखाई दे

अंदर से जो है काश वो बाहर दिखाई दे
सुख दुख के बीच कोई तो अन्तर दिखाई दे

बादल भी काश सोच समझ कर ले फैंसला
बरसें न गर ग़रीब का छप्पर दिखाई दे

कहते हैं लोग आज भी मेरे लिए यही
अंदर वही बशर है जो बाहर दिखाई दे

इंसान देख ले तो उसे दिख ही जाएगा
सब कुछ तो साफ़ साफ़ ही अंदर दिखाई दे

सिक्कों के साथ मन का ये बच्चा चहक उठा
उनको तो सिर्फ एक ये चिल्लर दिखाई दे

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है …

उसने विनम्रता से छुपाई कटार है.
मुख जिसका शिष्टता से ढका इश्तहार है.

किसने किया है साँसों का वितरण बताओ तो,
जीवन मरण का कौन यहाँ सूत्र-धार है.

शालीनता के सूत्र किताबों में छोड़ना,
बदले समय में बस ये सफलता का द्वार है.

अब तक न ओढ़ पाया जो निष्पक्ष आवरण,
कहता है स्वाभिमान से इतिहासकार है.

हर सत्य के निवास पे कालिख पुती हुई,
वातावरण में झूठ का इतना प्रचार है.

अपना तो सब मेरा है मगर, सबका सब मेरा,
इस बात का जो सार है उत्तम विचार है.

कहने को लगती ठीक है पर सच में दिल को क्या,
जितनी विजय है उतनी ही स्वीकार हार है.

रविवार, 6 अप्रैल 2025

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

होठों के आस पास ये इक टूटा जाम है …

कोमा कहाँ लगेगा कहाँ पर विराम है.
किसको पता प्रथम है के अंतिम प्रणाम है.

घर था मेरा तो नाम भी उस पर मेरा ही था,
ईंटों की धड़कनों में मगर और नाम है.

कोशिश करोगे तो भी न फिर ढूँढ पाओगे,
अक्सर वहीं मिलूँगा जो मेरा मुक़ाम है.

होता है ज़िन्दगी में कई बार इस क़दर,
दिन उग रहा है पर न पता किसकी शाम है.

घर यूँ जलाया उसने मेरे सामने लगा,
अब हो न हो ये कोई पड़ोसी का काम है.

यादों में क़ैद कर के रखा है तमाम उम्र,
सच-सच कहो ये आपका क्या इंतक़ाम है.

घायल न कर दे मय की तलब इस क़दर मुझे,
होठों के आस-पास ये इक टूटा जाम है.

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

होली है …

रंगों में डूब जाइए होली का रोज़ है
फागुन का गीत गाइए होली का रोज़ है

पलकें ज़रा उठाइए होली का रोज़ है
ख़ुद में सिमट न जाइए होली का रोज़ है

कीचड़ नहीं ये रंग हैं ताज़ा पलाश के
यूँ तो न मुँह बनाइए होली का रोज़ है

कुछ लोग पीट-पीट के छाती कहेंगे अब
पानी न यूँ बहाइए होली का रोज़ है

बाहर खड़े हैं देर से आ आइये हज़ूर
हमको न यूँ सताइए होली का रोज़ है

भर दूँ ये माँग आपकी उल्फ़त के रंग में
हाँ है तो मुस्कुराइए होली का रोज़ है

कुर्ता सफ़ेद डाल के ये रिस्क ले लिया
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है

वैसे भी मुझपे इश्क़ का रहता है अब नशा
ये भांग मत पिलाइए होली का रोज़ है
तरही ग़ज़ल 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

महा शिवरात्रि …

महा शिवरात्रि के पावन दिवस की सभी को बहुत बहुत बधाई …. भोले नाथ की विशेष कृपा सदा सब पर रहे.
अभी कुछ दिन पहले बाबा भीमाशंकर के दर्शन का सौभाग्य मिला और बाबा की विशेष कृपा से कुछ लिखने को प्रभु ने प्रेरित किया … आज महा शिवरात्रि पर रचना के कुछ अँश प्रस्तुत कर रहा हूँ, शीघ्र ही पूरी रचना के साथ प्रस्तुत होऊँगा…जय जय भोले नाथ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

तू उदय न अस्त में शेष है, तू प्रलय विनाश प्रलेश है
तू ही शब्द-अशब्द विशेष है, तू ही ब्रह्म-नाद में लेश है
तू भवेश,अशेष,महेश है, तू ही सर्व-बंध-विमोचनम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्

तू ही संत असंत महंत है, तू क्षितिज है छोर दिगंत है
तू अनादि-आदि न अंत है, तू असीम अपार, अनंत है
तू अघोर घोर जयंत है, तू ही सर्व लोक चरा-चरम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्

तू ही गीत-अगीत प्रगीत में, तू ही छन्द ताल पुनीत में
तू भविष्य में तू अतीत में, तू समय के साथ व्यतीत में
तू ही वाध यंत्र सुगीत में, तू मृदंग नृत्य है तांडवम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्

तू पुराण है तू नवीन है, तू प्रगट भी हो के विलीन है
तू ही चिर-समाधि में लीन है,ये जगत भी तेरे अधीन है
तू ही ज्ञान, ध्यान प्रवीन है, तू ही शंभु-शंभु महेश्वरम्
तू ही डम-ड-डम, तू ही बम-ब-बम, तू त्रयम्बकम्, तू शिव:-शिवम्
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