बुधवार, 23 जून 2021
पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं ...
सर्द हवा में गर्म चाय का थर्मस भर चलते हैं.
शुक्रवार, 11 जून 2021
कश्तियाँ डूबीं अनेकों फिर भी घबराया नहीं ...
देख
कर तुमको जहाँ में और कुछ भाया नहीं.
कैसे
कह दूँ ज़िन्दगी में हमने कुछ पाया नहीं.
सोच
लो तानोगे छतरी या तुम्हे है भीगना,
आसमाँ
पे प्रेम का बादल अभी छाया नहीं.
प्रेम
की पग-डंडियों पर पाँव रखना सोच कर,
लौट
कर इस राह से वापस कोई आया नहीं.
पत्थरों
से दिल लगाने का हुनर भी सीख लो,
फिर
न कहना वक़्त रहते हमने समझाया नहीं.
प्रेम
हो, शृंगार, मस्ती, या विरह की बात हो,
कौन
सा है रंग जिसको प्रेम ने गाया नहीं.
तुमको
पाया, रब को पाया, और क्या जो चाहिए,
कश्तियाँ
डूबीं अनेकों फिर भी घबराया नहीं.
गुरुवार, 3 जून 2021
तीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही ...
इक पुरानी याद
दिल से मुद्दतों लिपटी रही.
घर, मेरा
आँगन, गली, बस्ती मेरी महकी रही.
कुछ उजाले शाम
होते ही लिपटने आ गए,
रात भर ये रात
छज्जे पर मेरे अटकी रही.
लौट कर आये नहीं
कुछ पैर आँगन में मेरे,
इक उदासी घर के
पीपल से मेरे लटकी रही.
उनकी आँखों के
इशारे पर सभी मोहरे हिले,
जीत का सेहरा भी
उनका हार भी उनकी रही.
चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
रात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.
रौशनी के चोर
चोरी रात में करने चले,
तीरगी की आड़ ले
कर रौशनी छुपती रही.
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