स्वप्न मेरे: पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं ...

बुधवार, 23 जून 2021

पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं ...

सर्द हवा में गर्म चाय का थर्मस भर चलते हैं.
पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं.
 
खिड़की खुली देख कर उस दिन शाम लपक कर आई,
हाथ पकड़ कर बोली बेटा चल छत पर चलते हैं.
 
पर्स हाथ में ले कर जब वो पैदल घर से निकली,
इश्क़ ने फिर चिल्ला के बोला चल दफ्तर चलते हैं.
 
सब के साथ तेरी आँखों में दिख जाती है हलचल,
जब जब बूट बजाते हम जैसे अफसर चलते हैं.
 
गश खा कर कुछ लोग गिरे थे, लोगों ने बोला था,
पास मेरे जब आई बोली चल पिक्चर चलते हैं.
 
जब जब उम्र ठहरने लगती दफ्तर की टेबल पे,
धूल फांकती फ़ाइल बोली चल अब घर चलते हैं.
 
याद किसी की नींद कहाँ आने देगी आँखों में,
नींद की गोली खा ले चल उठ अब बस कर चलते हैं. 

27 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!गज़ब का सृजन सर।
    बहुत ही सुंदर।

    पर्स हाथ में ले कर जब वो पैदल घर से निकली,
    इश्क़ ने फिर चिल्ला के बोला चल दफ्तर चलते हैं..वाह!

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  2. आती क्या खंडाला से आगे की रचना...ऐज़ युज़ुअल...बेहतरीन...👌👌👌

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-06-2021को चर्चा – 4,105 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  4. सर्द हवा में गर्म चाय का थर्मस भर चलते हैं.
    पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं.
    बहुत सुंदर पंक्तियां

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  5. यह ग़ज़ल मनमौजी अंदाज़ में लिखी है आपने दिगम्बर जी। आनंद आ गया पढ़कर।

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  6. वाह !! बहुत खूब !!
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल । बेफिक्री के मूड को दर्शाती अति सुन्दर
    भावाभिव्यक्ति ।

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  7. याद किसी की नींद कहाँ आने देगी आँखों में,
    नींद की गोली खा ले चल उठ अब बस कर चलते हैं.

    वाह !! बहुत खूब...एक से बढ़कर एक लाजबाब शेर...सादर नमन आपको

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  8. खूबसूरत अंदाजेबयां,बेहतरीन गज़ल ।

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  9. वाह!एक अलग अंदाज की हासृय रस की ग़ज़ल मस्ती से भरी।
    बहुत खूब।

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  10. वाह! लाजवाब ग़ज़ल! दाद स्वीकारें.

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  11. सर्द हवा में गर्म चाय का थर्मस भर चलते हैं.
    पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं,,,,,,,,, बहुत सुंदर ग़ज़ल बारिश और गर्म चाय,।

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  12. आज तो गज़ब के मूड में लिखी है ग़ज़ल ।

    बेहतरीन ।

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  13. वाह क्‍या बात है नासवा जी, गश खा कर कुछ लोग गिरे थे, लोगों ने बोला था,
    पास मेरे जब आई बोली चल पिक्चर चलते हैं.....मनमौजी गज़ल

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  14. पर्स हाथ में ले कर जब वो पैदल घर से निकली,
    इश्क़ ने फिर चिल्ला के बोला चल दफ्तर चलते हैं.
    वाह!!!
    क्या बात...
    अलग ही अंदाज... लाजवाब।

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  15. याद किसी की नींद कहाँ आने देगी आँखों में,
    नींद की गोली खा ले चल उठ अब बस कर चलते हैं.
    लगभग हर व्यक्ति की जुबां को एक अभिव्यक्ति दे देते हैं आपके अलफ़ाज़ !! लिखते रहिये

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  16. सर्द हवा में गर्म चाय का थर्मस भर चलते हैं.
    पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं.
    वाह सर ! दिल तो पहले ही शेर पर मर मिटा!
    आगे आगे तो गज़ब की बातें मिलीं, जैसे -
    सब के साथ तेरी आँखों में दिख जाती है हलचल,
    जब जब बूट बजाते हम जैसे अफसर चलते हैं.
    और.....
    जब जब उम्र ठहरने लगती दफ्तर की टेबल पे,
    धूल फांकती फ़ाइल बोली चल अब घर चलते हैं.
    बहुत पसंद आई ये ग़ज़ल भी !

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है