एक और पन्ना कोशिश, माँ को समेटने की से ... आपका प्रेम मिल रहा है इस किताब को, बहुत आभार है आपका ... कल पुस्तक मेले, दिल्ली में आप सब से मिलने की प्रतीक्षा है ... पूरा जनवरी का महीना इस बार भारत की तीखी चुलबुली सर्दी के बीच ...
लगा तो लेता तेरी तस्वीर दीवार पर
जो दिल के कोने वाले हिस्से से
कर पाता तुझे बाहर
कैद कर देता लकड़ी के फ्रेम में
न महसूस होती अगर
तेरे क़दमों की सुगबुगाहट
घर के उस कोने से
जहाँ मन्दिर की घंटियाँ सी बजती रहती हैं
भूल जाता माँ तुझे
न देखता छोटी बेटी में तेरी झलक
या सुबह से शाम तेरे होने का एहसास कराता
अपने अक्स से झाँकता तेरा चेहरा
के भूल तो सकता था रौशनी का एहसास भी
जो होती न कभी सुबह
या भूल जाता सूरज अपने आने की वजह
ऐसी ही कितनी बेवजह बातों का जवाब
किसी के पास नहीं होता ...
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की