स्वप्न मेरे: जून 2023

शुक्रवार, 30 जून 2023

दीवानों की क़िस्मत में बस इश्क़ छपा होगा …

आज की ग़ज़ल आप गर्भनाल के ताज़ा जुलाई २०२३ के अंक में भी पढ़ सकते हैं … पत्रिका का मुखपृष्ठ भी मेरे कैमरे द्वारा लिया गया है … 

पर्दे की ओटक में सादा अक़्स छुपा होगा. खिड़की-खिड़कीघन-घन बादल इश्क़ लिखा होगा.

तितली बारिशइंद्र-धनुष ये सब उल्फ़त के मानी,

चिड़ियों को ज़र्रे-ज़र्रे में इश्क़ मिला होगा.


सर-सरझर-झर खुली हवा में चटर-पटर कुछ बातें,

पत्ता-पत्ताबूटा-बूटाइश्क़ उगा होगा.

 

ब्रह्म काल में केसर ओढ़े किरणों ने पट खोले,

धूप खिली तो सकल-जगत में इश्क़ जगा होगा.


जल-थल दूर गगन तक महकी सौंधी-सौंधी ख़ुशबू,

धूल उड़ी तो सतरंगी सा इश्क़ उड़ा होगा.


गहराई से उठती-गिरती साहिल तक  जाएँ,

कल-कलछल-छल लहरों-लहरों इश्क़ दिखा होगा.


डूबोगे जब ख़ुद पल-पल-तब-तब कण-कण जानोगे,

दीवानों की क़िस्मत में बस इश्क़ छपा होगा.

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रविवार, 18 जून 2023

आपके अपने विचारों को पता देते हैं …

दर्द में डूबे नज़ारों का पता देते हैं.
फूल जब टहनी से खारों का पता देते हैं.

हम ही आशिक़ हैं ये ख़ुशफ़हमी हमें थी लेकिन,

पूछने पर वो हज़ारों का पता देते हैं.


हम समझ पाए  आवाज़ का मतलब वरना,

सूखे पत्ते ही बहारों का पता देते हैं.


चाँद पर जाओ डिनर कर लो कहा था कुछ ने,

और कुछ हैं जो सितारों का पता देते हैं.


गुजरे लम्हों के भी किरदार हमें मिलने को,

सुरमई रात के तारों का पता देते हैं.


इंतिहा दर्द कीसुख-दुःख कीजो पूछी हमने,

सब तेरे इश्क़ के मारों का पता देते हैं.


रब से जब रब के ठिकानों की निशानी पूछी,

रब मुझे मेरे ही यारों का पता देते हैं.


खोजना चाहो जो जीवन का असल में मक़सद,

लोग चेहरे की दरारों का पता देते हैं,


आपके लफ़्ज़ग़ज़लमित्रनज़रघरदुश्मन,

आपके अपने विचारों का पता देते हैं.

“तरही ग़ज़ल”

सोमवार, 12 जून 2023

लगा था मुझे भी के तू अप्सरा है …

परिंदों ने आ कर कहा सब हरा है.
गगन से भी ऊँचा गगन दूसरा है.

उजाला कहाँ ले के आते हैं जुगनू,
चमकना ही उनका उमीदों भरा है.

मेरा नाम आया तो शर्मां गई तुम,
सरे-आम महफ़िल में ये तप्सरा है.

न हम तुम, न ये इश्क़, बदनाम होता,
निगाहों से पूछो ये क्या माजरा है.

गुलाबी गुलाबी तो हो इश्क़ में तुम,
दुपट्टा मगर क्यों अभी तक हरा है.

अभी इश्क़ में थे, अभी बे-रुखी क्यों,
अदा है या कोई नया पैंतरा है.

तेरा साथ क़िस्मत में जब तक नहीं था,
लगा था मुझे भी के तू अप्सरा है.

बुधवार, 7 जून 2023

खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए …

छोटी इस एक बात पे दुनिया को खल गए.
बंजर ज़मीन पर ही उगे और पल गए.

जिनका था आफ़ताब से गठ-जोड़ हर जगह,
कल रात चाँदनी से मिले हाथ जल गए.

गिरते हुवे भी थाम ली बाजू खजूर नें,
गिर कर भी आसमान से हम यूँ संभल गए.

इतना हुनर था ये भी न महसूस हो सका,
सिक्के असल के साथ ही खोटे भी चल गए.

सुन कर भी सुन सके न कभी ख़ुद ने जो कहा,
वो ज्ञान बाँट-बाँट के आगे निकल गए.

मजबूर ग़र नहीं तो ये आदत न हो कहीं,
कीचड़ दिखा तो पाँव भी झट से फ़िसल गए.

कुछ लोग ओढ़ कर जो चले मोम का लिबास,
खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए.