स्वप्न मेरे: धूप
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बुधवार, 14 जुलाई 2021

चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया ...

बादलों के पार तारों में कहीं छुड़वा दिया I 
चन्द टूटी ख्वाहिशों का दर्द यूँ बिखरा दिया I
 
एक बुन्दा क्या मिला यादों की खिड़की खुल गई, 
वक़्त ने बरसों पुराने इश्क़ को सुलगा दिया I
 
करवटों के बीच सपनों की ज़रा दस्तक हुई, 
रात ने झिर्री से तीखी धूप को सरका दिया I
 
आसमानी चादरें माथे पे उतरी थीं अभी,
एक तितली ने पकड़ कर चाँद को बैठा दिया I
 
प्रेम का सच आँख से झरता रहा आठों पहर,
और होठों के सहारे झूठ था, बुलवा दिया I  
 
पेड़ ने पत्ते गिराए पर हवा के ज़ोर पे,
और सारा ठीकरा पतझड़ के सर रखवा दिया I
 
एक चरवाहे की मीठी धुन पहाड़ी से उठी,
चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया I
 

सोमवार, 30 मार्च 2020

हिसाब चाहत का


कहाँ खिलते हैं फूल रेगिस्तान में ... हालांकि पेड़ हैं जो जीते हैं बरसों बरसों नमी की इंतज़ार में ... धूल है की साथ छोड़ती नहीं ... नमी है की पास आती नहीं ... कहने को सागर साथ है पीला सा ...

मैंने चाहा तेरा हर दर्द
अपनी रेत के गहरे समुन्दर में लीलना

तपती धूप के रेगिस्तान में मैंने कोशिश की
धूल के साथ उड़ कर
तुझे छूने का प्रयास किया

पर काले बादल की कोख में
बेरंग आंसू छुपाए
बिन बरसे तुम गुजर गईं  

आज मरुस्थल का वो फूल भी मुरझा गया
जी रहा था जो तेरी नमी की प्रतीक्षा में

कहाँ होता है चाहत पे किसी का बस ...

सोमवार, 15 जुलाई 2019

मेघ हैं आकाश में कितने घने ...

मेघ हैं आकाश में कितने घने
लौट कर आए हैं घर में सब जने  

चिर प्रतीक्षा बारिशों की हो रही   
बूँद अब तक बादलों में सो रही
हैं हवा में कागजों की कत-रने
मेघ हैं आकाश में ...

कुछ कमी सी है सुबह से धूप में
आसमां पीला हुआ है धूल में  
रेड़ियाँ लौटी घरों को अन-मने
मेघ हैं आकाश में ...

नगर पथ पल भर में सूना हो गया
वायु का आवेग दूना हो गया
रह गए बस पेड़ के सूखे तने
मेघ हैं आकाश में ...

दिन में जैसे रात का आभास है
पहली बारिश का नया एहसास है
मुक्त हो चातक लगे हैं चीखने
मेघ हैं आकाश में ...

चाय भी तैयार है गरमा-गरम
उफ़ जलेबी हाय क्या नरमा-नरम
मिर्च आलू के पकोड़े भी बने
हैं आकाश में ...

सोमवार, 17 जून 2019

आसमानी पंछियों को भूल जा ...


धूप की बैसाखियों को भूल जा  
दिल में हिम्मत रख दियों को भूल जा

व्यर्थ की नौटंकियों को भूल जा
मीडिया की सुर्ख़ियों को भूल जा

उस तरफ जाती हैं तो आती नहीं
इस नदी की कश्तियों को भूल जा

टिमटिमा कर फिर नज़र आते नहीं
रास्ते के जुगनुओं को भूल जा

हो गईं तो हो गईं ले ले सबक
जिंदगी की गलतियों को भूल जा

याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
कर के सारी नेकियों को भूल जा

रंग फूलों के चुरा लेती हैं ये
इस चमन की तितलियों को भूल जा

टूट कर आवाज़ करती हैं बहुत
तू खिजाँ की पत्तियों को भूल जा

इस शहर से उस शहर कितने शहर 
आसमानी पंछियों को भूल जा 

सोमवार, 11 मार्च 2019

दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे ...


सहारा बे-सहारा ढूंढ लेंगे
मुकद्दर का सितारा ढूंढ लेंगे

जो माँ की उँगलियों में था यकीनन
वो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे

गए जिस जिस जगह जा कर वहीं हम
हरा बुन्दा तुम्हारा ढूंढ लेंगे

मेरे कश्मीर की वादी है जन्नत
वहीं कोई शिकारा ढूंढ लेंगे

अभी इस जीन से कर लो गुज़ारा
अमीरी में शरारा ढूंढ लेंगे

बनाना है अगर उल्लू उन्हें तो
कहीं मुझ सा बेचारा ढूंढ लेंगे

नए हैं पंख सपने भी नये हैं       
गगन पे हम गुबारा ढूंढ लेंगे

सितारे रात भर टूटे जहाँ ... चल  
वहीं अपने दुबारा ढूंढ लेंगे

नहीं जो लक्ष्य हम, कोई तो होगा
किधर है ये इशारा ढूंढ लेंगे

पिघलती धूप के मंज़र पे मिलना
नया दिलकश नज़ारा ढूंढ लेंगे

जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

क्यों हमारे गीत गाए ... क्या हुआ ...


नाप के नक़्शे बनाए ... क्या हुआ
क्या खज़ाना ढूंढ पाए ... क्या हुआ

नाव कागज़ की उतारी थी अभी
रुख हवा का मोड़ आए ... क्या हुआ

कुछ उजाला बांटते, पर सो गए
धूप जेबों में छुपाए ... क्या हुआ

आसमानी शाल तो ओढ़ी नहीं
कुछ सितारे तोड़ लाए ... क्या हुआ

क्या हुआ, कुछ तो हुआ अब बोल दो 
मन ही मन क्यों मुस्कुराए ... क्या हुआ

ये कोई मेहमान तो लगते नहीं 
आ गए क्यों बिन-बुलाए ... क्या हुआ

तुम बताओ जो नहीं है प्यार तो
क्यों हमारे गीत गाए ... क्या हुआ

रविवार, 15 मार्च 2015

हैंग-ओवर ...

अजीब बिमारी है प्रेम ... न लगे तो छटपटाता है दिल ... लग जाये तो ठीक होने का मन नहीं करता ... समुंदर जिसमें बस तैरते रहो ... आग जिसमें जलते रहो ... शराब जिसको बस पीते रहो ...

आँखों के काले पपोटों के सामने
टांग दिए तेरी यादों के झक्क काले पर्दे
बंद कर दिए इन्द्रियों के सभी रास्ते
जेब कर दिए तुझे छूने वाले दो खुरदरे हाथ

कि नहीं मिलना ज़िन्दगी की धूप से
चमक में जिसकी नज़र न आए तेरा अक्स
कि नहीं सुनना वो सच
जो होता है दरअसल सबसे बड़ा झूठ, तेरे ज़िक्र के बिना
नहीं छूनी हर वो शै, जिसमें तेरा एहसास न हो

हाँ खींचना चाहता हूँ तुझे हर काश के साथ
की रह सके देर तक तू
फेफड़ों में मेरे दिल के बहुत करीब

पीना चाहता हूँ तुझे टल्ली हो जाने तक
की उतरे न नशा सुबह होने तक

कि चाहता हूँ रहना
तेरे ख़्वाबों के हैंग-ओवर में उम्र भर 

सोमवार, 17 नवंबर 2014

धूप छाँव उम्र निकलती रही ...

बूँद बूँद बर्फ पिघलती रही
ज़िंदगी अलाव सी जलती रही

चूड़ियों को मान के जंजीर वो
खुद को झूठे ख्वाब से छलती रही

है तेरी निगाह का ऐसा असर
पल दो पल ये साँस संभलती रही

मौसमों के खेल तो चलते रहे
धूप छाँव उम्र निकलती रही

गम कभी ख़ुशी भी मिली राह में
कायनात शक्ल बदलती रही

रौशनी ही छीन के बस ले गए
आस फिर भी आँख में पलती रही