स्वप्न मेरे: ताव दे कर बोलती है देख अब मेरी तड़ी ...

सोमवार, 27 नवंबर 2023

ताव दे कर बोलती है देख अब मेरी तड़ी ...

है नहीं परवाह तुमको धूप में हूँ मैं खड़ी. 
पोंछ कर चेहरे को ग़ुस्से में वो मुझसे लड़ पड़ी.

मुझसे टकरा कर कहा कुछ तो मगर मुझको लगा,
बज रही को कान में जैसे पटाखों की लड़ी.

उठने लगती है तो मन करता अब ये कर ही दूँ,
पाँव में बेड़ी लगा दूँ, हाथ में ये हथकड़ी.

देख मत लेना भरी आँखों से तुम आकाश को,
वर्ना ये बादल लगा देते हैं बूँदों की झड़ी.

रश है कितना मैंने बोला देख लेंगे बाद में,
पर वो पहले दिन के, पहले शो पे है, अब तक अड़ी.

मग से कॉफ़ी के मेरे तितली ने आकर सिप लिया,
सामने बैठी हुई मासूम लड़की हंस पड़ी.

यक-ब-यक इक बात पर गुस्सा हुई फिर मूंछ पर,
ताव दे कर बोलती है देख अब मेरी तड़ी.

11 टिप्‍पणियां:

  1. लाज़वाब गज़ल सर।
    हर इक शेर अनूठा है।
    सादर।
    ----

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २८ नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. वाह! ! अनोखा अंदाज़, ज़िंदगी के कुछ सुंदर पलों को शब्दों में बखूबी पिरोया है

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  3. वाह !! बिलकुल नया सा अन्दाज़ गज़ल का। लाज़वाब ग़ज़ल ।

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  5. वाह!!!
    अद्भुत एवं लाजवाब
    👌👌🙏🙏

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है