इक आईना था हमसे जो तोड़ा नहीं गया.
बेहतर तो यही होगा के खुद को समेट लें,
पथ तेज़ बवंडर का जो मोड़ा नहीं गया.
यह इश्क़ अधूरा ही न रह जाए उम्र भर,
नदिया को समुन्दर से जो जोड़ा नहीं गया.
टूटे तो न जुड़ पाएँगे ता-उम्र फिर कभी,
रिश्तों को अगर वक़्त पे जोड़ा नहीं गया.
मुश्किल है समझना के है आरम्भ या है अंत,
इस छोर से उस छोर जो दौड़ा नहीं गया.
मुँडेर पे बैठा जो चहकता था रात दिन,
पंछी था फ़क़त दिल से निगोड़ा नहीं गया.
मुमकिन है दिखेगा कभी गर्दन के आस-पास,
जो हाथ कभी हमसे मरोड़ा नहीं गया.
मुमकिन है दिखेगा कभी गर्दन के आस-पास,
जो हाथ कभी हमसे मरोड़ा नहीं गया.
टूटे तो न जुड़ पाएँगे ता-उम्र फिर कभी,
जवाब देंहटाएंरिश्तों को अगर वक़्त पे जोड़ा नहीं गया.
बहुत सटीक...
मुश्किल है समझना के है आरम्भ या है अंत,
इस छोर से उस छोर जो दौड़ा नहीं गया.
वाह!!!!
क्या बात...
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब।
लाजवाब
जवाब देंहटाएंबेहतर तो यही होगा के खुद को समेट लें,
जवाब देंहटाएंपथ तेज़ बवंडर का जो मोड़ा नहीं गया.
बहुत ख़ूब !! लाजवाब ग़ज़ल ।
प्रेम की पहली शर्त परिभाषित कर दी...स्वयं से प्रेम प्रथम...❤️
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 04 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह!! दिगंबर जी ,अद्भुत.....!
जवाब देंहटाएंटूटे तो न जुड़ पाएँगे ता-उम्र फिर कभी,
जवाब देंहटाएंरिश्तों को अगर वक़्त पे जोड़ा नहीं गया.
बहुत खूब, एक एक शेर लाजबाव, सादर नमन सर🙏
वाह
जवाब देंहटाएंअंतिम शेर जरा अटपटा सा लगा, बाक़ी सभी बेहतरीन हैं
जवाब देंहटाएंवाह ! उम्दा शायरी
जवाब देंहटाएंशानदार - उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही लाजबाब प्रस्तुति, दिगंबर भाई।
जवाब देंहटाएंटूटे तो न जुड़ पाएँगे ता-उम्र फिर कभी,
जवाब देंहटाएंरिश्तों को अगर वक़्त पे जोड़ा नहीं गया....शानदार अल्फ़ाज़