स्वप्न मेरे: पोटली ... लम्हों की ...

शनिवार, 23 दिसंबर 2023

पोटली ... लम्हों की ...

मुझे याद है जाते जाते तुमने कहा था “भूल जाना मुझे”
पर पता नही क्यों बीते तमाम लम्हों की पोटली
मेरे पास छोड़ गईं

और मैं … हर आने वाले पल के साथ
तुम्हें भूलने की कोशिश में
अपने आप को मिटाने में जुट गया
चिन्दी-चिन्दी लम्हों को नौचने की कोशिश में
लहूलुहान होने लगा ...

अब जबकि वक़्त की सतह पे गढ़े लम्हों में फूल आने लगे हैं
तेरी यादें जवान हो रही हैं
बेकाबू मन तोड़ना चाहता है हर सीमा

अच्छा हुआ नाता तोड़ने के बाद तुम नहीं लौटीं
कभी कभी ज़िस्मानी गंध का एहसास
पागल कर देती है मुझे
#जंगली_गुलाब

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 25 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. सुन्दर कविता ! किन्तु ऐसी भावनाओं को नियंत्रित न कर पाने के भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं.

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  3. वाह! दिगंबर जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।

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  4. यादों की पुरवाई मन की बेचैनी बढ़ा देती है।
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. अब जबकि वक़्त की सतह पे गढ़े लम्हों में फूल आने लगे हैं
    तेरी यादें जवान हो रही हैं
    बेकाबू मन तोड़ना चाहता है हर सीमा
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब ।

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  6. भुलाने का हर प्रयत्न ही याद का सबब बन जाता है

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  7. और मैं … हर आने वाले पल के साथ
    तुम्हें भूलने की कोशिश में
    अपने आप को मिटाने में जुट गया
    चिन्दी-चिन्दी लम्हों को नौचने की कोशिश में
    लहूलुहान होने लगा ...हर शब्द हर भावना अपनी सी महसूस होती है आपके काव्य में ! 

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