मुझे याद है जाते जाते तुमने कहा था “भूल जाना मुझे”
पर पता नही क्यों बीते तमाम लम्हों की पोटली
मेरे पास छोड़ गईं
और मैं … हर आने वाले पल के साथ
तुम्हें भूलने की कोशिश में
अपने आप को मिटाने में जुट गया
चिन्दी-चिन्दी लम्हों को नौचने की कोशिश में
लहूलुहान होने लगा ...
अब जबकि वक़्त की सतह पे गढ़े लम्हों में फूल आने लगे हैं
तेरी यादें जवान हो रही हैं
बेकाबू मन तोड़ना चाहता है हर सीमा
अच्छा हुआ नाता तोड़ने के बाद तुम नहीं लौटीं
कभी कभी ज़िस्मानी गंध का एहसास
पागल कर देती है मुझे
#जंगली_गुलाब
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 25 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ! किन्तु ऐसी भावनाओं को नियंत्रित न कर पाने के भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं.
जवाब देंहटाएंवाह! दिगंबर जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।
जवाब देंहटाएंयादों की पुरवाई मन की बेचैनी बढ़ा देती है।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंअब जबकि वक़्त की सतह पे गढ़े लम्हों में फूल आने लगे हैं
जवाब देंहटाएंतेरी यादें जवान हो रही हैं
बेकाबू मन तोड़ना चाहता है हर सीमा
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब ।
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंभुलाने का हर प्रयत्न ही याद का सबब बन जाता है
जवाब देंहटाएंऔर मैं … हर आने वाले पल के साथ
जवाब देंहटाएंतुम्हें भूलने की कोशिश में
अपने आप को मिटाने में जुट गया
चिन्दी-चिन्दी लम्हों को नौचने की कोशिश में
लहूलुहान होने लगा ...हर शब्द हर भावना अपनी सी महसूस होती है आपके काव्य में !
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