ज़िन्दगी में हैं
कई लोग आग हों जैसे
हर अँधेरे में सुलगते
हैं जुगनुओं जैसे
सोच लेता हूँ कई बार बादलों जैसे
भीग लेने दूं किसी छत को बारिशों जैसे
बैठे बैठे भी कई
बार चौंक जाता हूँ
दिल में रहते हैं
कई लोग हादसों जैसे
हम सफ़र बन के
मेरे साथ वो नहीं तो क्या
मील दर मील खड़े
हैं वो पत्थरों जैसे
दिल के गहरे में
कई दर्द रोज़ उठते हैं
भूल जाता हूँ में
हर बार मुश्किलों जैसे
लोग ऐसे भी मेरी
ज़िन्दगी में आए हैं
खिलते रहते हैं
हमेशा जो तितलियों जैसे
सरसरी सी ही नज़र
डालना कभी हम पर
हमको पढ़ते हैं कई
लोग सुर्ख़ियों जैसे