स्वप्न मेरे: सिरफिरे
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शनिवार, 7 सितंबर 2024

सिरफिरे ...

मत ढूंढना मेरे शब्दों में अपने किस्से
ओर प्रेमिका तो कभी नहीं
मैं नहीं चाहता बढ़ जाए सिरफिरों की गिनती

काँटों में न ढूँढने लग जाएँ जंगली गुलाब
टुकड़ों में न बंट जाए ये शहर …

#जंगली_गुलाब

सोमवार, 10 नवंबर 2014

सुर्ख़ियों में न कभी खबर में आ सके ...

शाम आ सके न वो सहर में आ सके
दर्द फिर कभी न रह-गुज़र में आ सके

कायनात प्रेम से सजा दो इस कदर
लौट के वो शख्स अपने घर में आ सके

जिक्र है हमारा महफ़िलों में आज भी
पर कभी न आपकी नज़र में आ सके

दो ही आंसुओं ने डाल दी थी बेड़ियाँ
फिर कभी न लौट के सफ़र में आ सके

हद से बढ़ गई थी बेरुखी जनाब की
इसलिए न अपने हम शहर में आ सके

मर मिटे जो सिरफिरे वतन की आन पर
सुर्ख़ियों में ना कभी खबर में आ सके