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शनिवार, 15 जनवरी 2022
परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है ...
दो बूँद गिरा दे जो अभी उसके पास है,.
बुधवार, 14 जुलाई 2021
चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया ...
बादलों के पार तारों में कहीं छुड़वा दिया I
चन्द टूटी ख्वाहिशों का दर्द यूँ बिखरा दिया I
एक बुन्दा क्या मिला यादों की खिड़की खुल गई,
वक़्त ने बरसों पुराने इश्क़ को सुलगा दिया I
करवटों के बीच सपनों की ज़रा दस्तक हुई,
रात ने झिर्री से तीखी धूप को सरका दिया I
आसमानी चादरें माथे पे उतरी थीं अभी,
एक तितली ने पकड़ कर चाँद को बैठा दिया I
प्रेम का सच आँख से झरता रहा आठों पहर,
और होठों के सहारे झूठ था, बुलवा दिया I
पेड़ ने पत्ते गिराए पर हवा के ज़ोर पे,
और सारा ठीकरा पतझड़ के सर रखवा दिया I
एक चरवाहे की मीठी धुन पहाड़ी से उठी,
चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया I
बुधवार, 26 मई 2021
घुमड़ते बादलों को प्रेम का कातिब बना देना ...
घुमड़ते
बादलों को प्रेम का कातिब बना देना.
सुलगती
शाम के मंज़र को गजलों में बता देना.
बदल
जाएगा मौसम धूप में बरसात आएगी,
मिलन
के चार लम्हे जिंदगी के गुनगुना देना.
बुराई
ही नहीं अच्छाई भी होती है दुनिया में,
बुरा
जो ढूंढते हर वक़्त उनको आईना देना.
तलाशी
दे तो दूं दिल की तुम्हारा नाम आये तो,
तुम्हें
बदनाम करने का मुझे इलज़ाम ना देना.
दिलों
के खेल में जो ज़िन्दगी को हार बैठे हैं,
उन्हें
झूठी मुहब्बत का कभी मत झुनझुना देना.
सोमवार, 2 सितंबर 2019
पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...
धूल कभी जो आँधी बन के आएगी
पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी
अक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगा
बीज नई आशा के मन में बोयेगा
खींच लिए जायेंगे जब अवसर साधन
सपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगी
पल दो पल फिर
...
बादल बूँदा बाँदी कर उड़ जाएँगे
चिप चिप कपडे जिस्मों से जुड़ जाएँगे
चाट के ठेले जब सीले पड़ जाएँगे
कमसिन सड़कों पर कैसे फिर खाएगी
पल दो पल फिर
...
कितने कीट पतंगे
घर में आएँगे
मखमल के कीड़े
दर्शन दे जाते जाएँगे
मेंढक की
टर-टर झींगुर की रुन-झुन भी
आँगन में फिर गीत ख़ुशी के गाएगी
पल दो पल फिर
...
सोमवार, 1 जुलाई 2019
कौन मेरे सपनों में आ के रहता है ...
कौन मेरे सपनों में आ के रहता है
जिस्म किसी भट्टी सा हरदम दहता है
यादों की झुरमुट से धुंधला धुंधला सा
दूर नज़र आता है साया पतला सा
याद नहीं आता पर कुछ कुछ कहता है
कौन मेरे सपनों ...
बादल होते है काले से दूर कहीं
रीता रीता मन होता है पास वहीं
आँखों से खारा सा कुछ कुछ बहता है
कौन मेरे सपनों ...
घाव कहीं होता है सीने में गहरा
होता है तब्दील दिवारों में चेहरा
जर्जर सा इक पेड़ कहीं फिर ढहता है
कौन मेरे सपनों ...
दर्द सुनाई देता हैं इन साँसों में
टूटन सी होती है फिर से बाहों में
जिस्म बड़ी शिद्दत से गम को सहता है
कौन मेरे सपनों ...
सोमवार, 11 फ़रवरी 2019
झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई ...
इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई
आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई
माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो गई
कुछ दिनों का बोल कर अरसा हुआ लौटीं न तुम
इश्क की मंडी में जानाँ तबसे मंदी हो गई
बादलों की बर्फबारी ने पहाड़ों पर लिखा
रात जब सो कर उठी शहरों में सर्दी हो गई
कान दरवाज़े की कुंडी में ही अटके रह गए
झपकियों ही झपकियों में रात कब की हो गई
सोमवार, 2 जुलाई 2018
दरख्तों से कई लम्हे गिरेंगे ...
किसी की याद के मटके भरेंगे
पुराने रास्तों पे जब चलेंगे
कभी मिल जाएं जो बचपन के साथी
गुज़रते वक़्त की बातें करेंगे
गए टूटी हवेली पर, यकीनन
दिवारों से कई किस्से झरेंगे
जो रहना भीड़ में तनहा न रहना
किसी की याद के बादल घिरेंगे
दिये ने कान में चुपके से बोला
हवा से हम भला कब तक डरेंगे
जो तोड़े मिल के कुछ अमरुद कच्चे
दरख्तों से कई लम्हे गिरेंगे
सोमवार, 18 सितंबर 2017
मिलते हैं मेरे जैसे, किरदार कथाओं में ...
बारूद की खुशबू है, दिन रात हवाओं में
देता है कोई छुप कर, तकरीर सभाओं में
इक याद भटकती है, इक रूह सिसकती है
घुंघरू से खनकते हैं, खामोश गुफाओं में
बादल तो नहीं गरजे, बूँदें भी नहीं आईं
कितना है असर देखो, आशिक की दुआओं में
चीज़ों से रसोई की, अम्मा जो बनाती थी
देखा है असर उनका, देखा जो दवाओं में
हे राम चले आओ, उद्धार करो सब का
कितनी हैं अहिल्याएं, कल-युग की शिलाओं में
जीना तो तेरे दम पर, मरना तो तेरी खातिर
मिलते हैं मेरे जैसे, किरदार कथाओं में
बुधवार, 26 अक्तूबर 2016
हम भी किसी हसीन की आहों में आ गए ...
कुछ यूँ फिसल के वो मेरी बाहों में आ गए
ना चाहते हुए भी निगाहों में आ गए
सच की तलाश थी में अकेला निकल पड़ा
जुड़ते रहे थे लोग जो राहों में आ गए
हम भीगने को प्रेम की बरसात में सनम
कुछ देर बादलों की पनाहों में आ गए
था प्रेम उनसे उनके लगे झूठ सच सभी
ना चाह कर भी उनके गुनाहों में आ गए
मशहूर हो गया है हमारा भी नाम अब
हम भी किसी हसीन की आहों में आ गए
मंगलवार, 7 जून 2016
बिन पिए ही रात बहकने लगी ...
ईंट ईंट घर की दरकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी
बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी
क्या हुआ बदलने लगा आज रुख
जलने से मशाल हिचकने लगी
बादलों को ले के उड़ी जब हवा
धूप बे-हिसाब दहकने लगी
दीप आँधियों में भी जलता रहा
रात को ये बात खटकने लगी
धर्म के गुज़रने लगे काफिले
गर्द फिर लहू से महकने लगी
सच की बारिशें जो पड़ीं झूम के
झूठ की ज़मीन सरकने लगी
बे-नकाब यूँ ही तुम्हे देख कर
बिन पिए ही रात बहकने लगी
नीव खुद-ब-खुद ही सरकने लगी
बात जब बदलने लगी शोर में
छत दरो दिवार चटकने लगी
क्या हुआ बदलने लगा आज रुख
जलने से मशाल हिचकने लगी
बादलों को ले के उड़ी जब हवा
धूप बे-हिसाब दहकने लगी
दीप आँधियों में भी जलता रहा
रात को ये बात खटकने लगी
धर्म के गुज़रने लगे काफिले
गर्द फिर लहू से महकने लगी
सच की बारिशें जो पड़ीं झूम के
झूठ की ज़मीन सरकने लगी
बे-नकाब यूँ ही तुम्हे देख कर
बिन पिए ही रात बहकने लगी
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
धूप को वो छोड़ के घर आ गया ...
फोड़ के सभी का वो सर आ गया
उसमें पत्थरों का असर आ गया
बोल दो चिराग से छुप कर रहे
तेज़ आंधियों का शहर आ गया
छंट गए गुबार सभी धूल के
बादलों का झुण्ड जिधर आ गया
जुगनुओं की एक झलक क्या मिली
धूप को वो छोड़ के घर आ गया
पिछले कई दिनों से घर से दूर एरिज़ोना, यूं. एस. में हूँ, आज समय मिलने पे आपसे मुखातिब हूँ, उम्मीद है जल्दी ही ब्लॉग पे नियमित होऊंगा
उसमें पत्थरों का असर आ गया
बोल दो चिराग से छुप कर रहे
तेज़ आंधियों का शहर आ गया
छंट गए गुबार सभी धूल के
बादलों का झुण्ड जिधर आ गया
दुश्मनी रहेगी कभी भी नहीं
भूल जाने का जो हुनर आ गया
देखते न खुद के मुंहासे कभी
दूसरों का तिल भी नज़र गया
भूल जाने का जो हुनर आ गया
देखते न खुद के मुंहासे कभी
दूसरों का तिल भी नज़र गया
जुगनुओं की एक झलक क्या मिली
धूप को वो छोड़ के घर आ गया
पिछले कई दिनों से घर से दूर एरिज़ोना, यूं. एस. में हूँ, आज समय मिलने पे आपसे मुखातिब हूँ, उम्मीद है जल्दी ही ब्लॉग पे नियमित होऊंगा
रविवार, 26 अप्रैल 2015
कुछ तस्वीरें ...
इंसान की खुद पे पाबंदी कभी कामयाब नहीं होती ... कभी कभी तो तोड़ने की जिद्द इतनी हावी हो जाती है की पता नहीं चलता कौन टूटा ... सपना, कांच या जिंदगी ... फुसरत के लम्हे आसानी से नही मिलते ... खुद से करने को ढेरों बातें ... काश टूटने से पहले पूरी हो चाहत ...
सिगरेट के धुंए से बनती तस्वीर
शक्ल मिलते ही
फूंक मार के तहस नहस
हालांकि आ चुकी होती हो तब तब
मेरे ज़ेहन में तुम
दागे हुए प्रश्नों का अंजाना डर
ताकत का गुमान की मैं भी मिटा सकता हूँ
या "सेडस्टिक प्लेज़र"
तस्वीर नहीं बनती तो भी बनता हूँ
(मिटानी जो है)
सच क्या है कुछ पता नहीं
पर मुझे बादल भी अच्छे नहीं लगते
शक्लें बनाते फिरते हैं आसमान में
कभी कभी तो जम ही जाते हैं एक जगह
एक ही तस्वीर बनाए
शरीर पे लगे गहरे घाव की तरह
फूंक मारते मारते अक्सर बेहाल हो जाता हूँ
सांस जब अटकने लगती है
कसम लेता हूँ बादलों को ना देखने की
पर कम्बख्त ये सिगरेट नहीं छूटेगी मुझसे ...
सिगरेट के धुंए से बनती तस्वीर
शक्ल मिलते ही
फूंक मार के तहस नहस
हालांकि आ चुकी होती हो तब तब
मेरे ज़ेहन में तुम
दागे हुए प्रश्नों का अंजाना डर
ताकत का गुमान की मैं भी मिटा सकता हूँ
या "सेडस्टिक प्लेज़र"
तस्वीर नहीं बनती तो भी बनता हूँ
(मिटानी जो है)
सच क्या है कुछ पता नहीं
पर मुझे बादल भी अच्छे नहीं लगते
शक्लें बनाते फिरते हैं आसमान में
कभी कभी तो जम ही जाते हैं एक जगह
एक ही तस्वीर बनाए
शरीर पे लगे गहरे घाव की तरह
फूंक मारते मारते अक्सर बेहाल हो जाता हूँ
सांस जब अटकने लगती है
कसम लेता हूँ बादलों को ना देखने की
पर कम्बख्त ये सिगरेट नहीं छूटेगी मुझसे ...
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