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मंगलवार, 13 दिसंबर 2022
चाँद झोली में छुपा के रात ऊपर जाएगी ...
रात को कहना सुबह जब लौट के घर जाएगी.
सोमवार, 28 मई 2018
बाल में ऊँगली फिराना तो नहीं ...
होठ दांतों में दबाना तो नहीं
यूँ ही कुछ कहना सुनाना तो नहीं
आप जो मसरूफ दिखते हो मुझे
गम छुपाने का बहाना तो नहीं
एक टक देखा हँसे फिर चल दिए
सच कहो, ये दिल लगाना तो नहीं
पास आना फिर सिमिट जाना तेरा
प्रेम ही है ना, सताना
तो नहीं
कप से मेरे चाय जो पीती हो तुम
कुछ इशारों में बताना तो नहीं
सच में क्या इग्नोर करती हो मुझे
ख्वामखा ईगो दिखाना तो नहीं
इक तरफ झुकना झटकना बाल को
उफ्फ, अदा ये कातिलाना तो नहीं
रात भर "चैटिंग" सुबह की ब्लैंक काल
प्रेम ही था "मैथ" पढ़ाना तो नहीं
कुछ तो था अकसर करा करतीं थीं तुम
बाल में ऊँगली फिराना तो नहीं
सोमवार, 13 नवंबर 2017
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में ...
बस वही मेरी निशानी, है अभी तक गाँव में
बोलता था जिसको नानी, है अभी तक गाँव में
खंडहरों में हो गई तब्दील पर अपनी तो है
वो हवेली जो पुरानी, है अभी तक गाँव में
चाय तुलसी की, पराठे, मूफली गरमा गरम
धूप सर्दी की सुहानी, है अभी तक गाँव में
याद है घुँघरू का बजना रात के चोथे पहर
क्या चुड़ेलों की कहानी, है अभी तक गाँव
में ?
लौट के आऊँ न आऊँ पर मुझे विश्वास है
जोश, मस्ती और जवानी, है अभी तक गाँव में
दूर रह के गाँव से इतने दिनों तक क्या
किया
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में
(तरही गज़ल - पंकज सुबीर जी के मुशायरे में लिखी, जो दिल के
हमेशा करीब है)
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