ये सिगरेट-चाय-तितली-गुफ्तगू सब याद आती है.
तेरी आग़ोश में गुज़री हुई शब याद आती है.
इसी ख़ातिर नहीं के तू ही मालिक है जगत भर का,
मुझे हर वक़्त वैसे भी तेरी रब याद आती है.
मेरे चेहरे पे गहरी चोट का इक दाग है ऐसा,
ये दर्पण देख लेता हूँ तेरी जब याद आती है.
न थी उम्मीद कोई ज़िन्दगी से पर ये सोचा था,
न आएगी कभी भी याद पर अब याद आती है.
सफ़र आसान यूँ होता नहीं है ज़िंदगी भर का,
मुहब्बत में रहो तो दर्द की कब याद आती है.
किसी का अक्स जो तुम ढूँढती रहती हो बादल में,
कहूँ शब्दों में सीधे से तो मतलब याद आती है.
धरा पर धूप उतर आती है ले के रूप की आभा,
किरन जब खिल-खिलाती है तेरी तब याद आती है.
क्या बात है जनाब...❤
जवाब देंहटाएंबदहवास सी हो जाती हैं, हवायें ग़म की जब
या तो तेरी सूरत, या सूरत-ए-रब याद आती है...
सफ़र आसान यूँ होता नहीं है ज़िंदगी भर का,
जवाब देंहटाएंमुहब्बत में रहो तो दर्द की कब याद आती है.
,,,,,बहुत खूब,,,
धरा पर धूप उतर आती है ले के रूप की आभा,
जवाब देंहटाएंकिरन जब खिल-खिलाती है तेरी तब याद आती है.
अति सुन्दर ! नायाब सृजन ।
वाह बहुत सुंदर सृजन। सिगरेट चाय से मुझे इलाहबाद विश्वविद्यालय के पास का बैंक रोड याद आ गया...😅 कुछ यादें चाहकर भी नहीं मिट सकती हमारे दिलों दिमाग से🌸
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंवाह ! उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25 जून 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंInteresting read. Looking forward to more posts like this. digital marketing agency in chennai
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