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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022
उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं ...
अभी तो कुछ बयानों में गिरी हैं.
सुबह के साथ सब फीकी मिलेंगी,
इसे मत दर्द के आँसू समझना,
मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हमारे प्रेम की शक्लें गिरी हैं.
जवानी, बचपना, रिश्ते ये हसरत,
किसी ने स्याही छिड़की आसमाँ पर,
सोमवार, 13 नवंबर 2017
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में ...
बस वही मेरी निशानी, है अभी तक गाँव में
बोलता था जिसको नानी, है अभी तक गाँव में
खंडहरों में हो गई तब्दील पर अपनी तो है
वो हवेली जो पुरानी, है अभी तक गाँव में
चाय तुलसी की, पराठे, मूफली गरमा गरम
धूप सर्दी की सुहानी, है अभी तक गाँव में
याद है घुँघरू का बजना रात के चोथे पहर
क्या चुड़ेलों की कहानी, है अभी तक गाँव
में ?
लौट के आऊँ न आऊँ पर मुझे विश्वास है
जोश, मस्ती और जवानी, है अभी तक गाँव में
दूर रह के गाँव से इतने दिनों तक क्या
किया
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में
(तरही गज़ल - पंकज सुबीर जी के मुशायरे में लिखी, जो दिल के
हमेशा करीब है)
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी ...
पत्थर मिलेंगे टूटे, तन्हाइयां मिलेंगी
मासूम खंडहरों में, परछाइयां मिलेंगी
इंसान की गली से, इंसानियत नदारद
मासूम अधखिली से, अमराइयां मिलेंगी
कुछ चूड़ियों की किरचें, कुछ आंसुओं के धब्बे
जालों से कुछ लटकती, रुस्वाइयां मिलेंगी
बाज़ार में हैं मिलते, ताली बजाने वाले
पैसे नहीं जो फैंके, जम्हाइयां मिलेंगी
पहले कहा था अपना, ईमान मत जगाना
इंसानियत के बदले, कठिनाइयां मिलेंगी
बातों के वो धनी हैं, बातों में उनकी तुमको
आकाश से भी ऊंची, ऊंचाइयां मिलेंगी
हर घर के आईने में, बस झूठ ही मिलेगा
कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी
मासूम खंडहरों में, परछाइयां मिलेंगी
इंसान की गली से, इंसानियत नदारद
मासूम अधखिली से, अमराइयां मिलेंगी
कुछ चूड़ियों की किरचें, कुछ आंसुओं के धब्बे
जालों से कुछ लटकती, रुस्वाइयां मिलेंगी
बाज़ार में हैं मिलते, ताली बजाने वाले
पैसे नहीं जो फैंके, जम्हाइयां मिलेंगी
पहले कहा था अपना, ईमान मत जगाना
इंसानियत के बदले, कठिनाइयां मिलेंगी
बातों के वो धनी हैं, बातों में उनकी तुमको
आकाश से भी ऊंची, ऊंचाइयां मिलेंगी
हर घर के आईने में, बस झूठ ही मिलेगा
कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी
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