क़रीब दो महीने हो गए, अभी तक देश की मिट्टी का आनंद ले रहा हूँ ... कुछ काम तो कुछ करोना का शोर ... उम्मीद है जल्दी ही मलेशिया लौटना होगा ... ब्लॉग पर लिखना भी शायद तभी नियमित हो सके ... तब तक एक ताज़ा गज़ल ...
कई क़िस्सों को पीछे छोड़ आया
सड़क तन्हाई की दौड़ आया
शहर जिस पर तरक़्क़ी के शजर थे
तेरी पगडंडियों से जोड़ आया
किसी की सिसकियों का दर्द ले कर
गुबाड़े कुछ हँसी के फोड़ आया
तेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं
सभी रिश्ते पुराने तोड़ आया
वहाँ थे मोह के किरदार कितने
दुशाला प्रेम का मैं ओढ़ आया
भरे थे जेब में आँसू किसी के
समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
कभी निकलो तो ले कर अपनी कश्ती
हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया
#मद्धम_मद्धम