स्वप्न मेरे: विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ ...

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ ...

विस्तार प्रेम का हूँ प्रेम पाश नहीं हूँ.
गंतव्य मुझको मान लो तलाश नहीं हूँ.

तुम ओढ़ कर ये धूप हमको मिलने न आना,
इक रात सुरमई सी हूँ प्रकाश नहीं हूँ.

विस्मृत न कर सकोगे आप प्रेम के लम्हे,
काँटा गुलाब का हूँ मैं पलाश नहीं हूँ.

कुछ पल हमारे साथ ठीक-ठाक हैं लेकिन,
मैं भाग्य को बदल दूँ ऐसी ताश नहीं हूँ.

शिव सा अनंत विष का कंठ पान किया है,
निर्माण लक्ष्य है मेरा विनाश नहीं हूँ.

माना के स्वीकृति मिली न प्रेम की अब तक,
विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ.

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह.. बहुत अच्छी, लाज़वाब गज़ल सर।
    हर एक शेर बेहतरीन है।
    प्रणाम
    सादर।
    ---------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. वाह ! विस्तार में ही तो आनंद है, सृजन है

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  3. विस्मृत न कर सकोगे आप प्रेम के लम्हे,
    काँटा गुलाब का हूँ मैं पलाश नहीं हूँ.... एक हृदयस्पर्शी रचना ...वाह

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  4. शिव सा अनंत विष का कंठ पान किया है,
    निर्माण लक्ष्य है मेरा विनाश नहीं हूँ.
    वाह!!!
    माना के स्वीकृति मिली न प्रेम की अब तक,
    विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ.
    क्या बात....
    बहुत ही लाजवाब एवं उत्कृष्ट गजल ।

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  5. माना के स्वीकृति मिली न प्रेम की अब तक,
    विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ.
    लाज़वाब रचना प्रणाम है गुरुदेव

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  6. बहुत सुंदर रचना।
    हर पंक्तियां लाजवाब।

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  7. माना के स्वीकृति मिली न प्रेम की अब तक,
    विचलित ज़रूर हूँ मगर निराश नहीं हूँ.
    बहुत ख़ूब !! बेहतरीन एवं लाजवाब अशआरों से सजी नायाब कृति ।

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