सुबह की चाय में इलायची सी तुम,
दिन भर छूती हो ज़िस्म हवा की मानिंद,
रात होते ही उतर आती हो खुमारी सी,
करती हो चहल-क़दमी ख़्वाबों के बीच …
सुकूनी चादर सा तुम्हारा अहसास,
आसमानी शाल सा तुम्हारा विस्तार,
ज़िंदगी यूँ नहीं गुज़र रही लम्हा-लम्हा,
कुछ तो अच्छा लिखा था मेरे खातों में …
जिनकी एवज़ में तुम मिलीं.
बिगड़ते मौसम के वजूद से बचाने वाली …
यूँ ही मुझसे लिपट कर उम्र भर चलते रहना.
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंऔर मैं महकता रहूँ इलायची की तरह :) वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर बिबों से सजी सुंदर रचना सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह लाजवाब बहुत ही सुन्दर 💙❤️
जवाब देंहटाएंबिगड़ते मौसम के वजूद से बचाने वाली …
जवाब देंहटाएंयूँ ही मुझसे लिपट कर उम्र भर चलते रहना.
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वाह वाह वाह क्या पंक्तियाँ हैं... बहुत सुंदर रचना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 सितंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत सुंदर
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