स्वप्न मेरे: ज़िन्दगी
ज़िन्दगी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ज़िन्दगी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 6 अगस्त 2022

फ़लसफा - लम्बी उम्र का ...

माँगता है इन्सान दुआ लम्बी उम्र की 
पर नहीं समझ पाता कौन सी उम्र  
 
ढल जाता है बचपन नासमझी में
बीत जाती है जवानी तय शुदा साँसों में
 
हाँ ... मिलती है लम्बी उम्र    
जो आती है सिर्फ बुढापे के हिस्से
उम्र के एक ऐसे पक्ष में जहाँ दर्द के सिवा कुछ नहीं होता
डर रोज़ का हिस्सा होता है
अकेलेपन का एहसास गहरे अँधेरे सा फैलता है जहाँ
 
काश की लम्बी उम्र से ज्यादा अच्छी उम्र की दुआ होती
न होता तो बचपन लम्बा हो जाता या जवानी की राह ख़त्म न होती
 
काश की लम्बी उम्र की दुआओं के बाद
आमीन बोलने से पहले कोई तो समझाता ... लम्हों का घटा जोड़
किसको पता होता है लम्बी उम्र की दुआ आती है बुढापे के हिस्से

गुरुवार, 25 नवंबर 2021

कहीं से छूट गए पर कही से उलझे हैं

कहीं से छूट गए पर कही से उलझे हैं. 
हम अपनी ज़िन्दगी में यूँ सभी से उलझे हैं.
 
नदी है जेब में पर तिश्नगी से उलझे हैं,
अजीब लोग हैं जो खुदकशी से उलझे हैं.
 
नहीं जो प्रेम, पतंगों की ख़ुद-कुशी कह लो,
समझते-बूझते जो रौशनी से उलझे हैं.
 
तरक्कियों के शिखर झुक गए मेरी खातिर,
मगर ये दीद गुलाबी कली से उलझे हैं.
 
जो अपने सच से भी नज़रें चुरा रहे अब तक,
किसी के झूठ में वो ज़िन्दगी से उलझे हैं.  
 
सुनो ये रात हमें दिन में काटनी होगी,
अँधेरे देर से उस रौशनी से उलझे हैं.
 
किसी से नज़रें मिली, झट से प्रेम, फिर शादी,
ज़ईफ़ लोग अभी कुण्डली से उलझे हैं.
 
निगाह में तो न आते सुकून से रहते, 
गजल कही है तो उस्ताद जी से उलझे हैं.

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ ...


हज़ार काम उफ़ ये सोच के थक लेता हूँ
में बिन पिए जनाब रोज़ बहक लेता हूँ  

ये फूल पत्ते बादलों में तेरी सूरत है
वहम न हो मेरा में पलकें झपक लेता हूँ

कभी न पास टिक सकेगी उदासी मेरे
तुझे नज़र से छू के रोज़ महक लेता हूँ

हरी हरी वसुंधरा पे सृजन हो पाए 
में बन के बूँद बादलों से टपक लेता हूँ

तमाम रात तुझे देखना है खिड़की से
में चाँद बन के टहनियों में अटक लेता हूँ

मुझे सिफ़त अता करी है मेरे मौला ने
सुबह से शाम पंछियों सा चहक लेता हूँ

यही असूल मुद्दतों से मेरा है काइम
ख़ुशी के साथ साथ ग़म भी लपक लेता हूँ

तमाम अड़चनों से मिट न सकेगी हस्ती
में ठोकरों से ज़िन्दगी का सबक लेता हूँ

सितम हज़ार सह लिए हैं सभी हँस हँस के
किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ