माँगता है इन्सान दुआ लम्बी उम्र की पर नहीं समझ पाता कौन सी उम्र ढल जाता है बचपन नासमझी में बीत जाती है जवानी तय शुदा साँसों में हाँ ... मिलती है लम्बी उम्र जो आती है सिर्फ बुढापे के हिस्से उम्र के एक ऐसे पक्ष में जहाँ दर्द के सिवा कुछ नहीं होता डर रोज़ का हिस्सा होता है अकेलेपन का एहसास गहरे अँधेरे सा फैलता है जहाँ काश की लम्बी उम्र से ज्यादा अच्छी उम्र की दुआ होती न होता तो बचपन लम्बा हो जाता या जवानी की राह ख़त्म न होती काश की लम्बी उम्र की दुआओं के बाद आमीन बोलने से पहले कोई तो समझाता ... लम्हों का घटा जोड़ किसको पता होता है लम्बी उम्र की दुआ आती है बुढापे के हिस्से