स्वप्न मेरे: तमाम उम्र ही जैसे गुज़ार बैठा हो ...

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

तमाम उम्र ही जैसे गुज़ार बैठा हो ...

कहीं से चल के कहीं बार-बार बैठा हो.
मेरी तलाश में हिम्मत न हार बैठा हो.

नमक छिड़कते हैं कुछ लोग घाव पर अक्सर,
कहीं वो खुद से न पट्टी उतार बैठा हो.

यकीं नहीं तो यकीनन भरम रहेगा उसे,
भले ही पास में परवर-दिगार बैठा हो.

फ़क़ीर दिल से मुकद्दर की भेंट देता है,
गरीब हो के कहीं माल-दार बैठा हो.

पराई आग में तपती है ज़िन्दगी ऐसे,
बदन में जैसे किसी का बुखार बैठा हो.

लिबास ज़िस्म पे रहता है काँच का हर-दम,
कहीं किसी को न पत्थर से मार बैठा हो.

उलझ के एक ही लम्हे में रह गया इतना,
तमाम उम्र ही जैसे गुज़ार बैठा हो.

6 टिप्‍पणियां:

  1. यकीं नहीं तो यकीनन भरम रहेगा उसे,
    भले ही पास में परवर-दिगार बैठा हो.

    बहुत सुंदर अश्यार, बेहतरीन ग़ज़ल!

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  2. हमेशा की तरह बहुत ही सुखद एहसास समेटे ग़ज़ल...👌👌👌

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  3. शानदार गज़ल सर।
    सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं।
    सादर
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. यकीं नहीं है तो यकीनन भरम रहेगा ...वाह
    फकीर होके कहीं मालदार ...क्या कहने . हर शेर कुछ खास कहता है .

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