एक समीक्षा मेरी किताब कोशिश, माँ को समेटने की ... आदरणीय मीना जी की कलम से ... जो सन 2015 से अपने ब्लॉग "मंथन" पे लगातार लिख रही हैं ...
https://www.shubhrvastravita.com/
'कोशिश माँ को समेटने की' एक संवेदनशील चार्टेड एकाउटेंट श्री दिगम्बर नासवा जी पुस्तक है, जो घर -परिवार से दूर विदेशों में प्रवास करते स्मृतियों में सदा माँ के समीप
रहते हैं। लेखक के शब्दों में -
ये गुफ्तगू है मेरी , मेरे अपने साथ। आप कहेंगे
अपने साथ क्यों…, माँ से क्यों नहीं ? ...मैं कहूँगा… माँ मुझसे अलग कहाँ… लम्बा समय माँ के साथ रहा… लम्बा समय नहीं भी
रहा, पर उनसे दूर तो
कभी भी नहीं रहा...
किताब को पढ़ते हुए कभी मन में एक डायरी पढ़ने जैसा सुखद
अहसास जगता है तो कभी किसी आर्ट गैलरी में दुर्लभ पेंटिंग को देख मन को मिले सुकून
जैसा। कुछ रचनाओं से पूर्व के घटनाक्रम का उल्लेख बरबस ही लेखक के साथ-साथ पाठक को
भी उस दुनिया में ले जाता है जो लेखक के अनुभूत पलों की है। आज के
भौतिकतावादी युग में मानव हृदय की
संवेदनशीलता को जागृत करने के लिए इस तरह की सृजनात्मकता मरूभूमि में सावन की
रिमझिम के सुखद अहसास जैसी है।
माँ के लिए गीत एवं
गज़ल पुस्तक को पूर्णता प्रदान करते हैं।
पुस्तक पृष्ठ दर पृष्ठ आगे बढ़ती है जिसमें लेखक की खुद से
खुद की बातें हैं और बातों की धुरी 'माँ' है। सांसारिक
नश्वरता को मानते हुए भी एक पुत्र हृदय उस नश्वरता को अमरता में बाँध देता है।
उसकी एक बानगी की झलक -
पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ...
बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'कोशिश माँ को समेटने की' पुस्तक के लेखक श्री
दिगम्बर नासवा हैं। पुस्तक का ISBN : 978
-93-89177-89-3 और मूल्य : ₹150/- है।
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