स्वप्न मेरे: बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था ...

मंगलवार, 23 मई 2023

बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था ...

लट्टू, कंचे, चूड़ी, गिट्टे, पेंसिल बस्ता होता था.
पढ़ते कम थे फिर भी अपना एक नज़रिया होता था.

पूरा-पूरा होता था या सच में था माँ का जादू,
कम-कम हो कर भी घर में सब पूरा-पूरा होता था.

शब्द कहाँ गुम हो जाते थे जान नहीं पाए अब तक,
चुपके-चुपके आँखों-आँखों इश्क़ पुराना होता था.

अपनी पैंटें, अपने जूते, साझा थे सबके मोज़े,
चार भाई में, चार क़मीज़ें, मस्त गुज़ारा होता था.

लम्बी रातें आँखों-आँखों में मिन्टों की होती थीं,
उन्ही दिनों के इंतज़ार का सैकेंड घण्टा होता था.

तुम देखोगे हम अपने बापू जी पर ही जाएँगे,
नब्बे के हो कर भी जिन के मन में बच्चा होता था.

हरी शर्ट पे ख़ाकी निक्कर, पी. टी. शू, नीले मौजे,
बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था.

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह। बदलते समय की नब्ज टटोलती रचना ।

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  2. वाह !! आपकी ग़ज़ल पढ़कर यह गीत याद आ गया, एक था बचपन, एक था बचपन, बचपन के इक बाबूजी थे

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  3. मासूमियत और सादगी से भरा बचपन जीवन का सबसे पड़ाव होता है।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
    सादर
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. सच में न जाने क्या क्या होता था , लेकिन आज के बच्चों से ज्यादा सुकून भर बचपन था ।

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  5. सुंदर और बहूत सुंदर
    सादर अभिवादन

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  6. वाह, सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. पूरा-पूरा होता था या सच में था माँ का जादू,
    कम-कम हो कर भी घर में सब पूरा-पूरा होता था.
    सच में माँ का जादू था या समय का...सब पूरा पूराऔर भरा पूरा होता था...
    हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

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  8. बहुत शुक्रिया आप सब का … 🙏

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है