स्वप्न मेरे: शर्ट
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मंगलवार, 23 मई 2023

बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था ...

लट्टू, कंचे, चूड़ी, गिट्टे, पेंसिल बस्ता होता था.
पढ़ते कम थे फिर भी अपना एक नज़रिया होता था.

पूरा-पूरा होता था या सच में था माँ का जादू,
कम-कम हो कर भी घर में सब पूरा-पूरा होता था.

शब्द कहाँ गुम हो जाते थे जान नहीं पाए अब तक,
चुपके-चुपके आँखों-आँखों इश्क़ पुराना होता था.

अपनी पैंटें, अपने जूते, साझा थे सबके मोज़े,
चार भाई में, चार क़मीज़ें, मस्त गुज़ारा होता था.

लम्बी रातें आँखों-आँखों में मिन्टों की होती थीं,
उन्ही दिनों के इंतज़ार का सैकेंड घण्टा होता था.

तुम देखोगे हम अपने बापू जी पर ही जाएँगे,
नब्बे के हो कर भी जिन के मन में बच्चा होता था.

हरी शर्ट पे ख़ाकी निक्कर, पी. टी. शू, नीले मौजे,
बचपन जब मुड़ कर देखा तो जाने क्या-क्या होता था.

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

दिल से अपने पूछ के देखो ज़रा ...

बात उन तक तो ये पहुँचा दो ज़रा.
शर्ट का टूटा बटन टांको ज़रा.
 
छा रही है कुछ उदासी देर से,
बज उठो मिस कॉल जैसे तो ज़रा.
 
बात गर करनी नहीं तो मत करो,
चूड़ियों को बोल दो, बोलो ज़रा.
 
खिल उठेगा यूँ ही जंगली फूल भी,
पंखुरी पे नाम तो छापो ज़रा.  
 
तुमको लग जाएगी अपनी ही नज़र,
आईने में भी कभी झाँको ज़रा.
 
तितलियाँ जाती हुई लौट आई हैं,
तुम भी सीटी पे ज़रा, पलटो ज़रा.
 
उफ़, लिपस्टिक का ये कैसा दाग है, 
इस मुए कौलर को तो पौंछो ज़रा.
 
खेल कर, गुस्सा करो, क्या ठीक है, 
हार से पहले कहो, हारो ज़रा.
 
बोलती हो, सच में क्या छोड़ोगी तुम,
दिल से अपने पूछ के देखो ज़रा.