स्वप्न मेरे: डंका
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सोमवार, 8 मई 2023

शम्मा बुझी तो उड़ के पतंगे चले गए ...

लट्टू गए तो साथ में कंचे चले गए.
बजते थे जिनके नाम के डंके चले गए.

नाराज़ आईना भी तो इस बात पर हुआ,
दो चार दोष ढूँढ के अन्धे चले गए.

उस दिन के बाद लौट के वो घर नहीं गया,
माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए.

बापू की शेरवानी जो पहनी तो यूँ लगा,
हमको सम्भालते थे जो कन्धे चले गए.

गिर्दाब वक़्त का जो उठा सब पलट गया,
उठते थे बैठते थे जो बन्दे चले गए.

महँगे बिके जो लोग चमकते रहे सदा,
सोने के दिल थे जिनके वे मंदे चले गए.

मरना किसी के इश्क़ में जल कर ये अब नहीं,
शम्मा बुझी तो उड़ के पतंगे चले गए.