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बुधवार, 6 जनवरी 2021
आम सा ये आदमी जो अड़ गया ...
सच के लिए हर किसी से लड़ गया.
सोमवार, 11 सितंबर 2017
राधा के साथ मुरली-मनोहर चले गए ...
भुगतान हो गया तो निकल कर चले गए
नारे लगाने वाले अधिकतर चले गए
माँ बाप को निकाल के घर, खेत
बेच कर
बेटे हिसाब कर के बराबर चले गए
सूखी सी पत्तियाँ तो कभी धूल के गुबार
खुशबू तुम्हारी आई तो पतझड़ चले गए
खिड़की से इक उदास नज़र ढूंढती रही
पगडंडियों से लौट के सब घर चले गए
बच्चे थे तुम थीं और गुटर-गूं थी प्रेम
की
छज्जे से उड़ के सारे कबूतर चले गए
तुम क्या गए के प्रीत की सरगम चली गई
राधा के साथ मुरली-मनोहर चले गए
सोमवार, 18 नवंबर 2013
आ गया जो धर्म धड़े हो गए ...
ज़ुल्म के खिलाफ खड़े हो गए
नौनिहाल आज बड़े हो गए
थे जो सादगी के कभी देवता
बुत उन्ही के रत्न जड़े हो गए
ये चुनाव खत्म हुए थे अभी
लीडरों के नाक चड़े हो गए
आदमी के दर्द, खुशी एक से
आ गया जो धर्म, धड़े हो गए
लूटमार कर के कहा बस हुआ
आज से नियम ये कड़े हो गए
इश्क प्यार दर्द खुदा कुछ नहीं
बंदगी में यार, छड़े हो गए
नौनिहाल आज बड़े हो गए
थे जो सादगी के कभी देवता
बुत उन्ही के रत्न जड़े हो गए
ये चुनाव खत्म हुए थे अभी
लीडरों के नाक चड़े हो गए
आदमी के दर्द, खुशी एक से
आ गया जो धर्म, धड़े हो गए
लूटमार कर के कहा बस हुआ
आज से नियम ये कड़े हो गए
इश्क प्यार दर्द खुदा कुछ नहीं
बंदगी में यार, छड़े हो गए
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