स्वप्न मेरे
स्वप्न स्वप्न स्वप्न, सपनो के बिना भी कोई जीवन है
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सोमवार, 17 अगस्त 2020
एक बुग्नी फूल सूखा डायरी ...
धूप
कहती
है
निकल
के
दें
…
न
दें
रौशनी
हर
घर
को
चल
के
दें
…
न
दें
साहूकारों
की
निगाहें
कह
रहीं
दाम
पूरे
इस
फसल
के
दें
…
न
दें
तय
अँधेरे
में
तुम्हें
करना
है
अब
जुगनुओं
का
साथ
जल
के
दें
…
न
दें
बात
वो
सच
की
करेगा
सोच
लो
आइना
उनको
बदल
के
दें
…
न
दें
फैंसला
लहरों
को
अब
करना
है
ये
साथ
किश्ती
का
उछल
के
दे
...
न
दें
सच
है
मंज़िल
पर
गलत
है
रास्ता
रास्ता
रस्ता
बदल
के
दे
...
न
दें
एक
बुग्नी
,
फूल
सूखा
,
डायरी
सब
खज़ाने
हैं
ये
कल
के
दे
...
न
दें
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