स्वप्न मेरे: एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ ...

शनिवार, 31 मई 2025

एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ ...

मुद्दतों से है तुम्हारी आँख में अटका हुआ.
ख्व़ाब है बदनाम आवारा मेरा भटका हुआ.

मखमली सी याद है के पाँव की दस्तक कोई,
दिल के दरवाज़े में हलके से कहीं खटका हुआ.

ढेर सारी नेमतें ख़ुशियाँ उसी में बन्द हैं,
ट्रंक बापू का कबाड़े में जो है पटका हुआ.

हम तरक्क़ी के नशे में छोड़ कर हैं आ गए,
प्रेम धागा घर के रोशन-दान में लटका हुआ.

गुफ़्तगू करते थे खुद से आईने के सामने,
एक दिन हमको मिला वो बीच से चटका हुआ.

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !! हर इक अश्यार एक गहन अनुभूति, एक दृश्य और एक विचार को समेटे हुए है। अधूरे सपने, कोमल यादें, पुरानी पीढ़ी की विरासत, उपेक्षित प्रेम और आत्मसंदेह इन सभी के ताने-बाने से बुनी यह ग़ज़ल बेहद प्रभावशाली बन पड़ी है।

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  2. करत करत अभ्यास से जड़ मति होत सुजान,
    सोच-ए-fusion की पराकाष्ठा दिखे,
    तो उसे नासवा जान!
    भारी टिके हुए है सरजी, कलम-ए-खुराफात के कद्रदान भी active mode में reloaded मानें!
    परनाम स्वीकारे करें!
    लिखते रहिए ;)

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