तपती रेत के टीलों से उठती आग
समुन्दर का गहरा नीला पानी
सांप सी बलखाती “शेख जायद रोड़”
कंक्रीट का इठलाता जंगल
सभी तो रोज नज़र आते थे रुके हुवे
मेरे इतने करीब की मुझे लगा
शायद वक़्त ठहरा हुवा है मेरे साथ
ओर याद है वो “रिस्ट-वाच”
“बुर्ज खलीफा” की बुलंदी पे तुमने उपहार में दी थी
कलाई में बंधने के बाजजूद
कभी बैटरी नहीं डली थी उसमें मैंने
वक्त की सूइयां
रोक के रखना चाहता था मैं उन दिनों
गाड़ियों की तेज रफ़्तार
सुबह से दोपहर शाम फिर रात का सिलसिला
हवा के रथ पे सवार आसमान की ओर जाते पंछी
कभी अच्छा नहीं लगा ये सब मुझे ...
वक्त के गुजरने का एहसास जो कराते थे
जबकि मैं लम्हों को सदियों में बदलना चाहता था
वक़्त को रोक देना चाहता था
तुम्हारे ओर मेरे बीच एक-टक
स्तब्ध, ग्रुत्वकर्षण मुक्त
टिक टिक से परे, धडकन से इतर
एक लम्हा बुनना चाहता था
लम्हों को बाँध के रखने की इस जद्दोजेहद में
उम्र भी कतरा कतरा पिघल गई
फिर तुम भी तो साथ छोड़ गयीं थी ...
शेख जायद रोड - दुबई की एक मशहूर सड़क
बुर्ज खलीफा - अभी तक की दुनिया में सबसे ऊंची इमारत दुबई की