ज़िंदगी क्या इतनी है के दूजे की पहल का इंतज़ार करते रहो ... और वो भी कब तक ... प्रेम नहीं, ऐसा तो नहीं ... यादों से मिटा दिया, ऐसा भी नहीं ... तो फिर क्यों खड़ी हो जाती है कोई दीवार, बाँट देती है जो दुनिया को आधा-आधा ...
दो पीठ के बीच का फांसला
मुड़ने के बाद ही पता चल पाता है
हालांकि इंच भर की दूरी
उम्र जितनी नहीं
पर सदियाँ गुज़र जाती हैं तय करने में
"ईगो" और "स्पोंड़ेलाइटिस"
कभी कभी एक से लगते हैं दोनों
दर्द होता है मुड़ने पे
पर मुश्किल नहीं होती
जरूरी है तो बस एक ईमानदार कोशिश
दोनों तरफ से
एक ही समय, एक ही ज़मीन पर
हाँ ... एक और बात
बहुत ज़रूरी है मुड़ने की इच्छा का होना
दो पीठ के बीच का फांसला
मुड़ने के बाद ही पता चल पाता है
हालांकि इंच भर की दूरी
उम्र जितनी नहीं
पर सदियाँ गुज़र जाती हैं तय करने में
"ईगो" और "स्पोंड़ेलाइटिस"
कभी कभी एक से लगते हैं दोनों
दर्द होता है मुड़ने पे
पर मुश्किल नहीं होती
जरूरी है तो बस एक ईमानदार कोशिश
दोनों तरफ से
एक ही समय, एक ही ज़मीन पर
हाँ ... एक और बात
बहुत ज़रूरी है मुड़ने की इच्छा का होना
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