कितना कुछ होता रहता है
और सच तो ये भी है
कितना कुछ नहीं भी होता ...
फिर भी ...
बहुत कुछ जब नहीं हो रहा होता
कायनात में कुछ न कुछ ज़रूर होता रहता है
जैसे ...
मैंने डाले नहीं,
तुमने सींचे नहीं
प्रेम के बीज हैं अपने आप ही उगते रहते हैं
उठती हैं, मिटती हैं, फिर उठती हैं
लहरों की चाहत है पाना
प्रेम खेल रहा है मिटने मिटाने का खेल सदियों
से
जालसाजी कायनात की ...
कसूर तेरी आँखों का ...
या खेल .... जंगली गुलाब का ...
#जंगली_गुलाब
वाह सुंदर अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता जी ...
हटाएंमैंने डाले नहीं, तुमने सींचे नहीं
जवाब देंहटाएंप्रेम के बीज हैं अपने आप ही उगते रहते हैं
बहुत खूब, बहुत सुंदर भाव !!!
बहुत आभार मीना जी ...
हटाएंये जंगली गुलाब दिन पर दिन खतरनाक होता जा रहा है कोरोना काल में भी :)
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
लाल तो ज़रूर हो रहा है ... हा हा ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
बहुत कुछ जब नहीं हो रहा होता
जवाब देंहटाएंकायनात में कुछ न कुछ ज़रूर होता रहता है..
बहुत खूब... जंगली गुलाब की एक और लाजवाब कड़ी । बहुत सुन्दर ।
बहुत शुक्रिया मीना जी ...
हटाएंउठती हैं, मिटती हैं, फिर उठती हैं
जवाब देंहटाएंलहरों की चाहत है पाना
..वाह क्या बात कही आपने।।।एकदम सत्य।
बहुत शुक्रिया निहार रंजन जी ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार १९ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत आभार श्वेता जी ..
हटाएंजीवन सतत क्रियाशील है,बिना कुछ किये भी बहुत कुछ घट जाता है.
जवाब देंहटाएंजी सही बात है ...
हटाएंआभार आपका ...
मैंने डाले नहीं, तुमने सींचे नहीं
जवाब देंहटाएंप्रेम के बीज हैं अपने आप ही उगते रहते हैं
बहुत खूब, बहुत सुंदर भाव ,बधाई हो ,शुभ प्रभात
आभार ज्योति जी ...
हटाएंलाजवाब सर!!!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय ...
हटाएंदिगम्बर भाई, वास्तव में प्रेम के बीज उगते तो अपने आप हैं लेकिन जब तक हम उन्हें सींचते नहीं हैं तब तक वे पनपते नही हैं, यह भी एक कडवी सच्चाई हैं।
जवाब देंहटाएंजी सच बात है ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
वाह ! प्रेम की सुंदर परिभाषा, वाकई प्रेम अपने आप होता है, मोह किया जाता है, संसार में मोह को ही प्रेम मान लिया जाता है और फिर कड़वी सच्चाई से रूबरू होना पड़ता है. मोह की दलदल से जो पार हो गया वही गुलाब का हकदार बनता है अब चाहे वह जंगली हो या देशी ...
जवाब देंहटाएंप्रेम और मोह के भाव को कृष्ण ने बाखूबी अपने व्यव्हार में रखा है ... आभार आपका ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना " (चर्चा अंक-3707) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार आदरणीय ...
हटाएंसच है कि ये अनौखे बीजउगाने से नहीं उगते बल्कि अपने आप ही जाने कब किस माटी में नमी पाकर अंकुरित हो जाते हैं . बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका आदरणीय ...
हटाएंप्रेम खेल रहा है मिटने मिटाने का खेल सदियों से
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जी ... बहुत आभार ...
हटाएंजालसाजी कायनात की ...
जवाब देंहटाएंकसूर तेरी आँखों का ...
या खेल .... जंगली गुलाब का ...
बहुत खूब ,बड़ा मुश्किल हैं इस सवाल को समझना ही.....,बस खेल ही समझ ले....,सादर नमन आपको
जी खेल ही है ये भी एक ...
हटाएंआभार आपका ...
Bhot hi sundar kavita
जवाब देंहटाएंwww.khetikare.com
बहुत आभार आपका ...
हटाएंजालसाजी कायनात की ...
जवाब देंहटाएंकसूर तेरी आँखों का ...
या खेल .... जंगली गुलाब का ...
बहुत ही शानदार
बहुत शुक्रिया आपका ...
हटाएंबहुत कुछ जब नहीं हो रहा होता
जवाब देंहटाएंकायनात में कुछ न कुछ ज़रूर होता रहता है
वाह!!!
प्रेम खेल रहा है मिटने मिटाने का खेल सदियों से....
प्रेम के बीज स्वयं उगते हैं कहाँ उगना है ये भी स्वयं ही तय करते हैं ।
बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन...
जी सहमत आपकी बात से ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह
पढ़े--लौट रहे हैं अपने गांव
जी शुक्रिया ज्योति जी ...
हटाएंअच्छी कविता भाई साहब |स्वस्थ और सुरक्षित रहें |
जवाब देंहटाएंबहुत आभार तुषार जी ...
हटाएंसदियों से चल रहे इस खेल को बहुत खूबसूरती से आपने अभिव्यक्त किया है. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका ...
हटाएंजब आँखें ही जंगली गुलाब बन जाएँ तो...
जवाब देंहटाएंजी ऐसा ही है ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ...
हटाएंआप तो कहर ढा रहे हैं और आपके इन जंगली गुलाबों का तो कहना ही क्या
जवाब देंहटाएंजी बस ये खुशबू यूँ ही बनी रहे ... आभार आपका ...
हटाएंमैंने डाले नहीं, तुमने सींचे नहीं
जवाब देंहटाएंप्रेम के बीज हैं अपने आप ही उगते रहते हैं
लाजवाब भावाव्यक्ति
आभार वंदना जी ...
हटाएंइक और जंगली गुलाब :) और जंगली गुलाब की ही तरह मंद मंद खुशबू से लबरेज़
जवाब देंहटाएंमनमोहक रचना
बहुत शुक्रिया ज़ोया जी ...
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत आभार अनीता जी ...
हटाएंवाह बहुत ही शानदार सृजन नासवा जी।
जवाब देंहटाएंउम्दा/बेहतरीन।
बहुत आभार आदरणीय ...
हटाएंबहुत शानदार अभिव्यक्ति नासवा जी।
जवाब देंहटाएंउमर्दा/बेहतरीन।
बहुत आभार आपका ...
हटाएंमैंने डाले नहीं, तुमने सींचे नहीं
जवाब देंहटाएंप्रेम के बीज हैं अपने आप ही उगते रहते हैं ....जंगली गुलाब अपना खूब असर दिखा रहा है ..hahaha
Thanks Yogi ji ...
हटाएं