कभी
वो भूल से आए कभी बहाने से
मुझे
तो फर्क पड़ा बस किसी के आने से
नहीं
ये काम करेगा कभी उठाने से
ये
सो रहा है अभी तक किसी बहाने से
लिखे
थे पर न तुझे भेज ही सका अब-तक
मेरी
दराज़ में कुछ ख़त पड़े पुराने से
कभी
न प्रेम के बंधन को आज़माना यूँ
के
टूट जाते हैं रिश्ते यूँ आज़माने से
तुझे
छुआ तो हवा झूम झूम कर महकी
पलाश
खिलने लगे डाल के मुहाने से
निगाह
भर के मुझे देख क्या लिया उस दिन
यहाँ
के लोग परेशाँ हैं इस फ़साने से
मुझे
वो देख भी लेता तो कुछ नहीं कहता
मेरी
निगाह में रहता है वो ज़माने से
(तरही गज़ल)