स्वप्न मेरे: उजाले
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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं ...

उजाले के पर्व दीपावली की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ...
प्रभु राम का आगमन सभी को शुभ हो ...


तभी ये दीप घर-घर में जले हैं.
सजग सीमाओं पर प्रहरी खड़े हैं.

जले इस बार दीपक उनकी खातिर,
वतन के वास्ते जो मर मिटे हैं.

झुकी पलकें, दुपट्टा आसमानी,
यहाँ सब आज सतरंगी हुवे हैं.

अमावस की हथेली से फिसल कर,
उजालों के दरीचे खुल रहे हैं.

पटाखों से प्रदूषण हो रहा है,
दीवाली पर ही क्यों जुमले बने हैं.

सुबह उठ कर छुए हैं पाँव माँ के,
हमारे लक्ष्मी पूजन हो चुके हैं.

सफाई में मिली इस बार दौलत,
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं.
(तरही ग़ज़ल)

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

किसी गरीब की किस्मत से निवालों जैसे ...

लटक रहा हूँ में उलझे से सवालों जैसे
तू खिडकियों से कभी झाँक उजालों जैसे

है कायनात का जादू के असर यादों का
सुबह से शाम भटकता हूँ ख्यालों जैसे

समय जवाब है हर बात को सुलझा देगा
चिपक के बैठ न दिवार से जालों जैसे

किसी भी शख्स को पहचान नहीं हीरे की
मैं छप रहा हूँ लगातार रिसालों जैसे

में चाहता हूँ की खेलूँ कभी बन कर तितली
किसी हसीन के रुखसार पे बालों जैसे

बजा के चुटकी में बाजी को पलट सकता हूँ
मुझे न खेल तू शतरंज की चालों जैसे

करीब आ के मेरे हाथ से छूटी मंजिल
किसी गरीब की किस्मत से निवालों जैसे