उजाले के पर्व दीपावली की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ...
प्रभु राम का आगमन सभी को शुभ हो ...
तभी ये दीप घर-घर में जले हैं.
सजग सीमाओं पर प्रहरी खड़े हैं.
जले इस बार दीपक उनकी खातिर,
वतन के वास्ते जो मर मिटे हैं.
झुकी पलकें, दुपट्टा आसमानी,
यहाँ सब आज सतरंगी हुवे हैं.
अमावस की हथेली से फिसल कर,
उजालों के दरीचे खुल रहे हैं.
पटाखों से प्रदूषण हो रहा है,
दीवाली पर ही क्यों जुमले बने हैं.
सुबह उठ कर छुए हैं पाँव माँ के,
हमारे लक्ष्मी पूजन हो चुके हैं.
सफाई में मिली इस बार दौलत,
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं.
(तरही ग़ज़ल)
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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024
सोमवार, 15 जून 2020
यूँ ही गुज़रा - एक ख्याल ...
शबनम से लिपटी घास पर
नज़र आते हैं कुछ क़दमों के निशान
सरसरा कर गुज़र जाता है झोंका
जैसे गुजरी हो तुम छू कर मुझे
हर फूल देता है खुशबू जंगली गुलाब की
खुरदरी हथेलियों की चिपचिपाहट
महसूस कराती है तेरी हाथों की तपिश
उड़ते हुए धुल के अंधड़ में
दिखता मिटता है तेरा अक्स अकसर
जानता हूँ तुम नहीं हो आस-पास कहीं
पर कैसे कह दूँ की तुम दूर हो ...
#जंगली_गुलाब
रविवार, 1 फ़रवरी 2015
यादों के कुकुरमुत्ते
किसको पकड़ो किसको छोड़ो ... ये खरपतवार यादों की ख़त्म नहीं होती. गहरे हरे की रंग की काई जो जमी रहती है सदियों तक ... फिसलन भरी राह जहां रुकना आसान नहीं ... ये लहरें भी कहाँ ख़त्म होती हैं ... लौट आती हैं यादों की तरह बार बार किनारे पे सर पटकने ... कभी कांटे तो कभी फूल ...
सुबह की दस्तक से पहले
लिख आया कायनात के दरवाजे पे तेरा नाम
पूरब से आते हवा के झोंके
महकेंगे दिन भर जंगली गुलाब की खुशबू लिए
भूल नहीं पाता तुम्हें
कि यादों की चिल्लर के तमाम सिक्के
खनकते रहते हैं समय की जेब में
बस तेरे ही नाम से
लम्हों के बुलबुले उठते हैं हवा के साथ
फटते हैं कान के करीब
फुसफुसाते में जैसे अचानक तुम चीख पड़ीं कान में
नहीं आता तूफ़ान हवाओं के जोर पर
तूफ़ान खड़ा करने को
काफी है सुगबुगाहट तेरी याद की
कतरा कतरा रिसते रिसते
ख़त्म नहीं होती यादों की सिल्ली
ढीठ है ये बर्फ मौसम के साथ नहीं पिघलती
समय की पगडण्डी पर
धुंधला जाते हैं क़दमों के निशान
पर उग आते हैं जंगली गुलाब के झाड़
हसीन यादों की तरह
सुबह की दस्तक से पहले
लिख आया कायनात के दरवाजे पे तेरा नाम
पूरब से आते हवा के झोंके
महकेंगे दिन भर जंगली गुलाब की खुशबू लिए
भूल नहीं पाता तुम्हें
कि यादों की चिल्लर के तमाम सिक्के
खनकते रहते हैं समय की जेब में
बस तेरे ही नाम से
लम्हों के बुलबुले उठते हैं हवा के साथ
फटते हैं कान के करीब
फुसफुसाते में जैसे अचानक तुम चीख पड़ीं कान में
नहीं आता तूफ़ान हवाओं के जोर पर
तूफ़ान खड़ा करने को
काफी है सुगबुगाहट तेरी याद की
कतरा कतरा रिसते रिसते
ख़त्म नहीं होती यादों की सिल्ली
ढीठ है ये बर्फ मौसम के साथ नहीं पिघलती
समय की पगडण्डी पर
धुंधला जाते हैं क़दमों के निशान
पर उग आते हैं जंगली गुलाब के झाड़
हसीन यादों की तरह
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