स्वप्न मेरे: राम
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सोमवार, 12 अगस्त 2019

रोज़ प्रातः बोलते हैं विश्व का कल्याण हो ...

हम कहाँ कहते हैं केवल स्वयं का ही त्राण हो
रोज़ प्रातः बोलते हैं विश्व का कल्याण हो

है सनातन धर्म जिसकी भावना मरती नहीं
निज की सोचें ये हमारी संस्कृति कहती नहीं
हो गुरु बाणी के या फिर बुद्ध का निर्वाण हो  

राम को ही है चुनौती राम के ही देश में
शत्रु क्या घर में छुपा है मित्रता के वेश में?
राम मंदिर का पुनः उस भूमि पर निर्माण हो

मान खुद का ना रखा तो कौन पूछेगा हमें
हम नहीं जागे तो फिर इतिहास खोजेग हमें
दृष्टि चक्षू पर धनुरधर लक्ष्य पर ही बाण हो

कामना इतनी है बस मुझको प्रभू वरदान दे
सत्य पथ का मैं पथिक बन के चलूँ यह ज्ञान दे  
देश हित कुछ कर सकूँ काया तभी निष्प्राण हो 

सोमवार, 9 अप्रैल 2018

राम से ज्यादा लखन के नाम ये बनवास है ...


जिनके जीवन में हमेशा प्रेम है, उल्लास है
दर्द जितना भी मिले टिकता नहीं फिर पास है  

दूसरों के घाव सिलने से नहीं फुर्सत जिन्हें
अपने उधड़े ज़ख्म का उनको कहाँ आभास है

होठ चुप हैं पर नज़र को देख कर लगता है यूँ
दिल धड़कता है मेरा शायद उन्हें एहसास है

दिन गुज़रते ही जला लेते हैं अपने जिस्म को
जुगनुओं का रात से रिश्ता बहुत ही ख़ास है

आंधियां उस मोड़ से गुज़रीं थी आधी रात को
दीप लेकिन जल रहे होंगे यही विश्वास है

सिरफिरे लोगों का ही अंदाज़ है सबसे जुदा
पी के सागर कह रहे दिल में अभी भी प्यास है 

हों भले ही राम त्रेता युग के नायक, क्या हुआ 
राम से ज़्यादा लखन के नाम ये बनवास है

सोमवार, 18 सितंबर 2017

मिलते हैं मेरे जैसे, किरदार कथाओं में ...

बारूद की खुशबू है, दिन रात हवाओं में
देता है कोई छुप कर, तकरीर सभाओं में

इक याद भटकती है, इक रूह सिसकती है
घुंघरू से खनकते हैं, खामोश गुफाओं में

बादल तो नहीं गरजे, बूँदें भी नहीं आईं
कितना है असर देखो, आशिक की दुआओं में

चीज़ों से रसोई की, अम्मा जो बनाती थी
देखा है असर उनका, देखा जो दवाओं में

हे राम चले आओ, उद्धार करो सब का
कितनी हैं अहिल्याएं, कल-युग की शिलाओं में

जीना तो तेरे दम पर, मरना तो तेरी खातिर 
मिलते हैं मेरे जैसे, किरदार कथाओं में