स्वप्न मेरे: बुलबुला
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बुधवार, 15 मार्च 2023

रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था ...

न चाहते हुए भी इतना काम होना था.
हवा में एक बुलबुला तमाम होना था.


जो बन गया है खुद को भूल के फ़क़त राधे,
उसे तो यूँ भी एक रोज़ श्याम होना था.

वो खुद को आब ही समझ रहा था पर उसको,
किसी हसीन की नज़र का जाम होना था.

पता नहीं था आदमी को ज़िन्दगी में कभी,
उसे मशीनों का फिर से ग़ुलाम होना था.

नसीब खुल के अपना खेल खेलता हो जब,
रुकावटों के साथ इंतज़ाम होना था.

ये फ़लसफ़ा है न्याय-तंत्र का समझ लोगे,
जहाँ पे बात ज़ुल्म की हो राम होना था.

ये दिन ये रात वक़्त के अधीन होते हैं,
सहर को दो-पहर तो फिर से शाम होना था.

मिटा सको तो कर के देख लो हर इक कोशिश,
रहेगा हो के जो किसी का नाम होना था.

सोमवार, 22 अगस्त 2016

इंसानियत का झंडा कब से यहाँ खड़ा है ...

बीठें पड़ी हुई हैं, बदरंग हो चुका है
इंसानियत का झंडा, कब से यहाँ खड़ा है

सपने वो ले गए हैं, साँसें भी खींच लेंगे
इस भीड़ में नपुंसक, लोगों का काफिला है

सींचा तुझे लहू से, तू मुझपे हाथ डाले
रखने की पेट में क्या, इतनी बड़ी सजा है

वो काट लें सरों को, मैं चुप रहूँ हमेशा
सन्देश क्या अमन का, मेरे लिए बना है

क्यों खौलता नहीं है, ये खून बाजुओं में
क्या शहर की जवानी, पानी का बुलबुला है

बारूद कर दे इसको, या मुक्त कर दे इससे
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है

(तरही गज़ल ...)