स्वप्न मेरे: कब तलक तिश्नगी नहीं जाती ...

बुधवार, 9 जुलाई 2025

कब तलक तिश्नगी नहीं जाती ...

बात उनसे कही नहीं जाती.
और दिल से कभी नहीं जाती.

जीते रहते हैं, कहते रहते हैं,
ये जुदाई सही नहीं जाती.

नींद, डर, ख्व़ाब, आते-जाते हैं,
मौत आ कर कभी नहीं जाती.

आँख से हाँ लबों से ना, ना, ना,
ये अदा हुस्न की नहीं जाती.

राज़ की बात ऐसी होती है,
हर किसी से जो की नहीं जाती.

शायरी छोड़ कर ज़रा सोचो,
मय निगाहों से पी नही जाती.

तट पे गंगा के आजमाएंगे,
कब तलक तिश्नगी नहीं जाती.

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह सर..लाज़वाब गज़ल।
    सादर
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. शायरी छोड़ कर ज़रा सोचो,
    मय निगाहों से पी नही जाती.

    तट पे गंगा के आजमाएंगे,
    कब तलक तिश्नगी नहीं जाती.
    .....बहुत खूब,,,आपकी गजलों को पढ़ना एक नया अनुभव रहता है हरदम,,,

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  3. बात उनसे कही नहीं जाती.
    और दिल से कभी नहीं जाती.

    उम्दा ग़ज़ल

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  4. बहुत ही सरल और सहज अभिव्यक्ति |सभी शेर अपने आप में सम्पूर्ण और मोहक हैं | बधाई और शुभकामनाएं दिगंबर जी |

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  5. बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...👏👏👏

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  6. वाह!!!
    क्या बात...
    लाजवाब गजल
    तट पे गंगा के आजमाएंगे,
    कब तलक तिश्नगी नहीं जाती.

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