उनके भी तेरे मेरे और सबके घर गई.
उनकी तलाश में नज़र किधर-किधर गई.
चश्मा लगा के लोग काम पर चले गए,
सुस्ती को फिर जगह मिली जिधर-पसर गई.
घर लौटने की आस में कुछ लोग खप गए,
इक भीड़ गाँव-गाँव से शहर-शहर गई.
ख़ामोश तीरगी का शोर गूँजता रहा,
फिर ख़्वाब-ख़्वाब रात ये पहर-पहर गई.
जागा जो इश्क़, आरज़ू के पंख लग गए,
तितली बुझाने प्यास फिर शजर-शजर गई.
बादल के साथ-साथ रुख़ हवा का देख कर,
उम्मीद भी किसान की इधर-उधर गई.
लब सिल दिए सभी के पर सभी को थी ख़बर,
लोगों के बीच बात ये नज़र-नज़र गई.
लब सिल दिए सभी के
जवाब देंहटाएंपर सभी को थी ख़बर
सुंदर
आभार