स्वप्न मेरे: लोगों के बीच बात ये नज़र-नज़र गई ...

शनिवार, 26 जुलाई 2025

लोगों के बीच बात ये नज़र-नज़र गई ...

उनके भी तेरे मेरे और सबके घर गई.
उनकी तलाश में नज़र किधर-किधर गई.

चश्मा लगा के लोग काम पर चले गए,
सुस्ती को फिर जगह मिली जिधर-पसर गई.

घर लौटने की आस में कुछ लोग खप गए,
इक भीड़ गाँव-गाँव से शहर-शहर गई.

ख़ामोश तीरगी का शोर गूँजता रहा,
फिर ख़्वाब-ख़्वाब रात ये पहर-पहर गई.

जागा जो इश्क़, आरज़ू के पंख लग गए,
तितली बुझाने प्यास फिर शजर-शजर गई.

बादल के साथ-साथ रुख़ हवा का देख कर,
उम्मीद भी किसान की इधर-उधर गई.

लब सिल दिए सभी के पर सभी को थी ख़बर,
लोगों के बीच बात ये नज़र-नज़र गई.

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