स्वप्न मेरे: सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक ...

शनिवार, 19 जुलाई 2025

सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक ...

उदास लम्हे सा व्यतीत न पाया अब तक.
में शब के साथ-साथ बीत न पाया अब तक.

दुआ जो जीतने की करती है अक्सर मेरी,
में उससे जीत कर भी जीत न पाया अब तक.

किसी के प्रेम की नमी ने भिगोया इतना,
नदी सा सूख के भी रीत न पाया अब तक.

हर एक मोड़ पर मिले हैं अनेकों रहबर,
तुम्हारी सोच के प्रतीत न पाया अब तक.

प्रवाह, सोच, लफ़्ज़, का है ख़ज़ाना भर के,
बहर में फिर भी एक गीत न पाया अब तक.

रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
में अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.

किवाड़ ख़ुद ही दिल के बन्द किए हैं अकसर,
सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक.

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