उदास लम्हे सा व्यतीत न पाया अब तक.
में शब के साथ-साथ बीत न पाया अब तक.
दुआ जो जीतने की करती है अक्सर मेरी,
में उससे जीत कर भी जीत न पाया अब तक.
किसी के प्रेम की नमी ने भिगोया इतना,
नदी सा सूख के भी रीत न पाया अब तक.
हर एक मोड़ पर मिले हैं अनेकों रहबर,
तुम्हारी सोच के प्रतीत न पाया अब तक.
प्रवाह, सोच, लफ़्ज़, का है ख़ज़ाना भर के,
बहर में फिर भी एक गीत न पाया अब तक.
रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
में अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.
किवाड़ ख़ुद ही दिल के बन्द किए हैं अकसर,
सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक.
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 21 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
वाह! बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंरुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
जवाब देंहटाएंमें अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.
वाह!!!
बहुत सटीक एवं सार्थक
लाजवाब 👌👌🙏🙏
रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
जवाब देंहटाएंमैं अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.
बेहतरीन !! लाजवाब ग़ज़ल ।
बहुत ही शानदार ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंवाह!! बेहद उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंरुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
जवाब देंहटाएंमें अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.....सोच से कौन उबर पाया है नासवा जी ...शानदार लिखा ...वाह
वाह! दिगंबर जी , शानदार सृजन!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंcomprar carta
comprar carnet
Führerschein kaufen
buy driver licences
Führerschein kaufen mpu
kup prawo jazdy
kopa korkort