स्वप्न मेरे: सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक ...

शनिवार, 19 जुलाई 2025

सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक ...

उदास लम्हे सा व्यतीत न पाया अब तक.
में शब के साथ-साथ बीत न पाया अब तक.

दुआ जो जीतने की करती है अक्सर मेरी,
में उससे जीत कर भी जीत न पाया अब तक.

किसी के प्रेम की नमी ने भिगोया इतना,
नदी सा सूख के भी रीत न पाया अब तक.

हर एक मोड़ पर मिले हैं अनेकों रहबर,
तुम्हारी सोच के प्रतीत न पाया अब तक.

प्रवाह, सोच, लफ़्ज़, का है ख़ज़ाना भर के,
बहर में फिर भी एक गीत न पाया अब तक.

रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
में अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.

किवाड़ ख़ुद ही दिल के बन्द किए हैं अकसर,
सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक.

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 21 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
    में अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.
    वाह!!!
    बहुत सटीक एवं सार्थक
    लाजवाब 👌👌🙏🙏

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  3. रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
    मैं अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.
    बेहतरीन !! लाजवाब ग़ज़ल ।

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