स्वप्न मेरे: जुलाई 2025

शनिवार, 26 जुलाई 2025

लोगों के बीच बात ये नज़र-नज़र गई ...

उनके भी तेरे मेरे और सबके घर गई.
उनकी तलाश में नज़र किधर-किधर गई.

चश्मा लगा के लोग काम पर चले गए,
सुस्ती को फिर जगह मिली जिधर-पसर गई.

घर लौटने की आस में कुछ लोग खप गए,
इक भीड़ गाँव-गाँव से शहर-शहर गई.

ख़ामोश तीरगी का शोर गूँजता रहा,
फिर ख़्वाब-ख़्वाब रात ये पहर-पहर गई.

जागा जो इश्क़, आरज़ू के पंख लग गए,
तितली बुझाने प्यास फिर शजर-शजर गई.

बादल के साथ-साथ रुख़ हवा का देख कर,
उम्मीद भी किसान की इधर-उधर गई.

लब सिल दिए सभी के पर सभी को थी ख़बर,
लोगों के बीच बात ये नज़र-नज़र गई.

शनिवार, 19 जुलाई 2025

सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक ...

उदास लम्हे सा व्यतीत न पाया अब तक.
में शब के साथ-साथ बीत न पाया अब तक.

दुआ जो जीतने की करती है अक्सर मेरी,
में उससे जीत कर भी जीत न पाया अब तक.

किसी के प्रेम की नमी ने भिगोया इतना,
नदी सा सूख के भी रीत न पाया अब तक.

हर एक मोड़ पर मिले हैं अनेकों रहबर,
तुम्हारी सोच के प्रतीत न पाया अब तक.

प्रवाह, सोच, लफ़्ज़, का है ख़ज़ाना भर के,
बहर में फिर भी एक गीत न पाया अब तक.

रुका हुआ हूँ, वक़्त बन्द घड़ी का जैसे,
में अपनी सोच से ही जीत न पाया अब तक.

किवाड़ ख़ुद ही दिल के बन्द किए हैं अकसर,
सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक.

बुधवार, 9 जुलाई 2025

कब तलक तिश्नगी नहीं जाती ...

बात उनसे कही नहीं जाती.
और दिल से कभी नहीं जाती.

जीते रहते हैं, कहते रहते हैं,
ये जुदाई सही नहीं जाती.

नींद, डर, ख्व़ाब, आते-जाते हैं,
मौत आ कर कभी नहीं जाती.

आँख से हाँ लबों से ना, ना, ना,
ये अदा हुस्न की नहीं जाती.

राज़ की बात ऐसी होती है,
हर किसी से जो की नहीं जाती.

शायरी छोड़ कर ज़रा सोचो,
मय निगाहों से पी नही जाती.

तट पे गंगा के आजमाएंगे,
कब तलक तिश्नगी नहीं जाती.

बुधवार, 2 जुलाई 2025

दोस्ती वैसे भी हमको है निभानी आपकी ...

सब दराज़ें साफ़ कर लीं बात मानी आपकी.
क्या करूँ यादों का पर जो हैं पुरानी आपकी.

ज़ुल्फ़ का ख़म गाल का डिम्पल नयन की शोख़ियाँ, 
उफ़ अदा उस पर चुनर सरके है धानी आपकी.

रात मद्धम, खुश्क लम्हे, टुक सरकती ज़िन्दगी,
बज उठे ऐसे में चूड़ी आसमानी आपकी. 

शोर उठा अब तक पढ़ी, बोली, सुनी, देखी न हो,
मुस्कुरा के हमने भी कह दी कहानी आपकी.

शुक्र है आँखों कि भाषा सीख कर हम आये थे,
वरना मुश्किल था पकड़ना बेईमानी आपकी.

फैंकना हर चीज़ को आसान होता है सनम,
दिल से पर तस्वीर पहले है मिटानी आपकी.

जोश में कह तो दिया पर जा कहाँ सकते थे हम,
गाँव, घर, बस्ती, शहर है राजधानी आपकी.

हमसे मिल कर चुभ गया काँटा सुनो जो इश्क़ का,
काम आएगी नहीं फिर सावधानी आपकी.

चाँद, उफुक, बादल, तेरा घर, बोल जाना है कहाँ,
दोस्ती वैसे भी हमको है निभानी आपकी.