स्वप्न मेरे: जुलाई 2025

बुधवार, 2 जुलाई 2025

दोस्ती वैसे भी हमको है निभानी आपकी ...

सब दराज़ें साफ़ कर लीं बात मानी आपकी.
क्या करूँ यादों का पर जो हैं पुरानी आपकी.

ज़ुल्फ़ का ख़म गाल का डिम्पल नयन की शोख़ियाँ, 
उफ़ अदा उस पर चुनर सरके है धानी आपकी.

रात मद्धम, खुश्क लम्हे, टुक सरकती ज़िन्दगी,
बज उठे ऐसे में चूड़ी आसमानी आपकी. 

शोर उठा अब तक पढ़ी, बोली, सुनी, देखी न हो,
मुस्कुरा के हमने भी कह दी कहानी आपकी.

शुक्र है आँखों कि भाषा सीख कर हम आये थे,
वरना मुश्किल था पकड़ना बेईमानी आपकी.

फैंकना हर चीज़ को आसान होता है सनम,
दिल से पर तस्वीर पहले है मिटानी आपकी.

जोश में कह तो दिया पर जा कहाँ सकते थे हम,
गाँव, घर, बस्ती, शहर है राजधानी आपकी.

हमसे मिल कर चुभ गया काँटा सुनो जो इश्क़ का,
काम आएगी नहीं फिर सावधानी आपकी.

चाँद, उफुक, बादल, तेरा घर, बोल जाना है कहाँ,
दोस्ती वैसे भी हमको है निभानी आपकी.