पलट के आज फिर आ गई २५ सितम्बर ... वैस तो तू आस-पास ही होती है पर फिर भी आज
के दिन तू विशेष आती है ... माँ जो है मेरी ... पिछले सात सालों में, मैं जरूर कुछ
बूढा हुआ पर तू वैसे ही है जैसी छोड़ के गई थी ... कुछ लिखना तो बस बहाना है मिल
बैठ के तेरी बातें करने का ... तेरी बातों को याद करने का ...
सारी सारी रात नहीं फिर सोई है
पीट के मुझको खुद भी अम्मा रोई है
गुस्से में भी मुझसे प्यार झलकता था
तेरे जैसी दुनिया में ना कोई है
सपने पूरे कैसे हों ये सिखा दिया
अब किन सपनों में अम्मा तू खोई है
हर मुश्किल लम्हे को हँस के जी लेना
गज़ब सी बूटी मन में तूने बोई है
शक्लो-सूरत, हाड़-मास, तन, हर शक्ति
धडकन तुझसे, तूने साँस पिरोई है
बचपन से अब तक वो स्वाद नहीं जाता
चलती फिरती अम्मा एक रसोई है
माँ शब्द स्वयं में सारे रिश्तों को समेटे भावनाओं और संवेदनाओं से परिपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण सृजन सर।
आभार श्वेता जी ...
हटाएंनमन है हर माँ को। सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सुशील जी ...
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंशक्लो-सूरत, हाड़-मास, तन, हर शक्ति
जवाब देंहटाएंधडकन तुझसे, तूने साँस पिरोई है
बहुत ही सुंदर सृजन ,सादर
बहुत आभार ...
हटाएंअंतस्तल को छूती हुई ...
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ...
हटाएंसपने पूरे कैसे हों ये सिखा दिया
जवाब देंहटाएंअब किन सपनों में अम्मा तू खोई है
अनुपम..हृदय के बहुत करीब लगी आपकी रचना जैसे अपनी ही मन की बात हो ।
बहुत आभार मीना जी ...
हटाएंहर मुश्किल हर लम्हें को हंस के जी लेना
जवाब देंहटाएंगजब सी बूटी तूने मन में बोई है
बचपन से अब तक वो स्वाद जाता नहीं
अम्मा चलती -फिरती एक रसोई ,भावपूर्ण प्रस्तुति
शुक्रिया जी ...
हटाएंहर मुश्किल लम्हे को हँस के जी लेना
जवाब देंहटाएंगज़ब सी बूटी मन में तूने बोई है
गज़ब
आभार विभा जी ...
हटाएंहर मुश्किल लम्हे को हँस के जी लेना
जवाब देंहटाएंगज़ब सी बूटी मन में तूने बोई है...बहुत ही सुन्दर सृजन सर
सादर
आभार अनीता जी ...
हटाएंबहुत ही सुंदर शब्द सृजन..मन को छूती रचना
जवाब देंहटाएंआभार पम्मी जी ...
हटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति दिगंबर जी । सही है ,माँ तो माँ होती है ....।इस एक अक्षर के शब्द मेंं सारी सृष्टि समाई है ।
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल ... आभार आपका ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-09-2019) को "महानायक यह भारत देश" (चर्चा अंक- 3471) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार ...
हटाएंहृदय को छूने वाला लाजवाब सृजन।
जवाब देंहटाएंबचपन से अब तक वो स्वाद नहीं जाता
चलती फिरती अम्मा एक रसोई है।
बहुत आभार ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
शुक्रिया आपका ...
हटाएंमाँ की याद जाने कितनी स्मृतियाँ जगा जाती है.जीवन में इतना पाया कि झोली कभी खाली नहीं होगी - ऊर्जा बनी रहे मन की !
जवाब देंहटाएंसच है आपकी बात ...
हटाएंबहुत आभार है आपका ...
प्रकृति का सब से सुंदर उपहार माँ है. ममत्व को समेटे हुए कविता. बहुत ही खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंमाँ धुरी है जीवन की ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
वाह।
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आपकी कलाम से "माँ" पर कुछ पढ़ने को मिला।आनंद आ गया।बड़े सहज शब्दो मे अपने माँ का प्यार उकार दिया हैं काबिले ताऱीफ हैं।
बचपन से अब तक वो स्वाद नहीं जाता
चलती फिरती अम्मा एक रसोई है
और लगता हैं आपने भी बचपन मे काफी मार खायीं हैं।हाहाहा
सादर
जी ... पर वो मार जो हमने खाई है अब उसको तरसते हैं ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
हृदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंआभार अंकुर जी ...
हटाएंहर मुश्किल लम्हे को हँस के जी लेना
जवाब देंहटाएंगज़ब सी बूटी मन में तूने बोई है
शक्लो-सूरत, हाड़-मास, तन, हर शक्ति
धडकन तुझसे, तूने साँस पिरोई है ...माँ वो शब्द जिसमें सबकुछ समाया हुआ है ! बेहतरीन..... हृदयस्पर्शी शब्द
जी सच है माँ शब्द अपने आप में सब कुछ है ...
हटाएंआभार आपका ...
"सपने पूरे कैसे हों ये सिखा दिया
जवाब देंहटाएंअब किन सपनों में अम्मा तू खोई है
बचपन से अब तक वो स्वाद नहीं जाता
चलती फिरती अम्मा एक रसोई है"
अद्भुत अभिव्यक्ति!
🙏🙏🙏
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