मैं कई गन्जों
को कंघे बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ
सपने बेचता हूँ
काटता हूँ मूछ
पर दाड़ी भी रखता
और माथे के
तिलक तो साथ रखता
नाम अल्ला का
भी शंकर का हूँ लेता
है मेरा धंधा तमन्चे
बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ
...
धर्म का व्यापार मुझसे पल रहा है
दौर अफवाहों का
मुझसे चल रहा है
यूँ नहीं तो
शह्र सारा जल रहा है
चौंक पे हर
बार झगड़े बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ
...
एक ही गोदाम
में है माल सारा
गाड़ियाँ, पत्थर, के झन्डा हो के नारा
हर गली,
नुक्कड़ पे सप्लाई मिलेगी
टोपियों के
साथ चमचे बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ
...
हर विपक्षी का
कहा लिखता रहा हूँ
जो कहे सरकार मैं
जपता रहा हूँ
मैं ही टी.वी.,
मीडिया, अख़बार नेट मैं
यार हूँ पैसे का
ख़बरें बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ
...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-09-2019) को "स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन" (चर्चा अंक- 3454) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभर शास्त्री जी ...
हटाएंसही कहा दिगम्बर भाई कि सौदागर का कोई धर्म नहीं होता। सौदागर सिर्फ़ सौदागर होता हैं। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर कई बार अभी भी कॉमेंट बॉक्स खुलता नहीं हैं। अभी खुल गया इसलिए कॉमेंट कर पाई।
जी ... बहुत आभार ...
हटाएंकमेन्ट बॉक्स का कुछ समझ नहीं आता कहाँ गलत हो रहा है
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 10 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार दिग्विजय जी ...
हटाएंव्यवसायी केवल स्वयं का लाभ देखता है ..समसामयिकता पर बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मीना जी ...
हटाएंलगता है इस आधुनिक सौदागर का धर्म, कर्म, ईमान सभी पैसा ही है. धन्यवाद इसकी हकीकत से रूबरू कराने के लिए..
जवाब देंहटाएंजी सच तो यही है आज का ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
नाम अल्ला का भी शंकर का हूँ लेता
जवाब देंहटाएंहै मेरा धंधा तमन्चे बेचता हूँ
बेहतरीन सर्।बेहद उम्दा रचना।दिल को छू गयी।
शब्दो और भावनाओं को सही उकेरा हैं।
शुक्रिया ज़फर साहब ...
हटाएंवाह! बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका ...
हटाएंबहुत ही बढ़िया नमन
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति जी ...
हटाएंवाह बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ...
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ...
हटाएंवाह..सर बहुत सराहनीय..शानदार अभिव्यक्ति👍
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी ...
हटाएंवाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ...
हटाएंशानदार कटाक्ष है नासा जी, आधुनिक अशांति आतंक और मौत के सौदागरों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंसार्थक यथार्थ रचना ।
जी सच तो यही है ...
हटाएंआभार आपका ...
इस धन्धे में लागत कम...और मुनाफ़ा ज़्यादा है...बहुत ख़ूब लिखा है आपने...👌👌👌
जवाब देंहटाएंये बिलकुल सटीक कहा है आपने ...
हटाएंबहुत आभार ...
मैं ही टी.वी., मीडिया, अख़बार नेट मैं
जवाब देंहटाएंयार हूँ पैसे का ख़बरें बेचता हूँ
...उत्कृष्ट सृजन आनंद आ गया नासवा जी।
शुक्रिया संजय जी ...
हटाएंशुरू से आखिर तक हर एक शब्द में कहानी पिरोई हुई। फेसबुक पर साझा करने की अनुमति चाहूँगी।
जवाब देंहटाएंआभार अर्चना जी ...
हटाएंसहर्ष ही साझा करें ...
बहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया पम्मी जी ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंहर विपक्षी का कहा लिखता रहा हूँ
जो कहे सरकार मैं जपता रहा हूँ
मैं ही टी.वी., मीडिया, अख़बार नेट मैं
यार हूँ पैसे का ख़बरें बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ ...
वाह वाह!!!!!क्या बात... लाजवाब कटाक्ष, समसामयिक... सटीक....
बबाल मचाये हुए है ये सौदागर देश में...
बहुत लाजवाब।
जी ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
ऐसे ही सौदागैरों की भरमार है आजकल जो सब जगह सहजता से मिल जाते हैं,
जवाब देंहटाएंसटीक सामयिक प्रस्तुति
बहुत आभर आपका ...
हटाएंवाह!!दिगंबर जी ,क्या बात कही है ,लाजवाब !!
जवाब देंहटाएंऐसे सौदागरों को ढूँढना नहीं पडता ,हर जगह मिल जाते हैं ।
जी ... बहुत शुक्रिया आपका ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आभार अनीता जी ...
हटाएंहर विपक्षी का कहा लिखता रहा हूँ
जवाब देंहटाएंजो कहे सरकार मैं जपता रहा हूँ
मैं ही टी.वी., मीडिया, अख़बार नेट मैं
यार हूँ पैसे का ख़बरें बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ ...स्वागत ! एक सुन्दर रचना का
शुक्रिया योगी जी ...
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंआम आदमी की यह बात आपने बयाँ कर दी-
जवाब देंहटाएंमैं ही टीवी, मीडिया, अख़बार, नेट मैं
यार हूँ पैसे का ख़बरें बेचता हूँ
🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीतीश जी ...
हटाएं'बेचना है अपने लाभ के लिए - क्या अंतर पड़ता है कुछ भी टिका दो '-
जवाब देंहटाएंजी हाँ हुजूर, मैं मैं गीत बेचता हूं -गीत फ़रोश कविता याद आ गई
बहुत आभार आपका ...
हटाएंकमाल !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...
हटाएंSarkari Exam & PM Modi Sarkari Yojana Say Thank You So Much For Best Information. I Really Like Your Hard Work.
जवाब देंहटाएं