माँ का आँचल
शीतल पीपल देख रहा
मौन तपस्वी
अविचल पीपल देख रहा
शरद, शिशिर
हेमंत
गीष्म बैसाखी
वर्षा
ऋतु परिवर्तन प्रतिपल
पीपल देख रहा
कोयल की कू कू
कागा की
कोलाहल
उत्पाती पक्षी
दल पीपल देख रहा
शैशव की
किलकारी
यौवन की आशा
वृद्ध निराशा पल
पल पीपल देख रहा
पञ्च-तत्व अग्नि
तर्पण
जीवन अर्पण
मुक्त आत्मा निश्छल
पीपल देख रहा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " सोमवार 16 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुर आभार मीना जी ...
हटाएंशैशव की किलकारी
जवाब देंहटाएंयौवन की आशा
वृद्ध निराशा पल पल पीपल देख रहा
बहुत सुंदर रचना, दिगम्बर भाई।
आभार ज्योति जी ...
हटाएंSundar Rachna
जवाब देंहटाएंgate cse syllabus
शुक्रिया सर ...
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 17 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा जी ...
हटाएंउत्पाती पक्षी दल पीपल देख रहा
जवाब देंहटाएंवाह। पक्षी किस दल में होंगे आजकल?
शुक्रिया सुशील जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-09-2019) को "मोदी का अवतार" (चर्चा अंक- 3461) (चर्चा अंक- 3454) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार ...
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया ...
हटाएंवाह नासवा जी बेहतरीन अभिव्यक्ति पीपल में निहित मातृत्व एवं जंग हितकारी गुणों का बहुत सुंदर वर्णन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंपीपल के माध्यम से पूरा जीवन- चक्र ...अतीव सुन्दर
जवाब देंहटाएंसृजन ।
शुक्रिया मीना जी ...
हटाएंपीपल सदियों का गवाह है. पीपल जीवन का साक्षी है. बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया आपका ...
हटाएंवाह!!दिगंबर जी ,बहुत खूब!!शैशव से लेकर वृद्धत्व तक के काल का साक्षी है पीपल ..सम्पूर्ण जीवन काल का अद्भुत वर्णन 👌
जवाब देंहटाएंआभार बहुत बहुत ...
हटाएंतभी तो पीपल को " देव बृक्ष " कहते हैं ,बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंजी सच कहा है आपने ...
हटाएंमौन तपस्वी अविचल पीपल देख रहा ....भावपूर्ण चित्रण!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंमाँ के आँचल की छाँव तले अभय हो बढ़नबढ़ना और फिर माँ का पञ्च तत्व में विलीन हो जाना..
जवाब देंहटाएंशिशु की शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक हर एक क्रियाकलापों का साक्ष्य मौन पीपल महान तपस्वी सा ही तो है समभाव अडिग....!!!
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब
आभार सुधा जी ...
हटाएंएक दम दार्शनिक अंदाज में व्यक्त किये गए भाव ...पूरी कविता देव बृक्ष के इर्द गिर्द घुमती हुई सार्थक अर्थ संप्रेषित करती है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी ...
हटाएंअनुपम भाव ... अद्भुद लेखन शैली
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सदा जी ...
हटाएंजिसने पीपल लगाया है उसका मां होना, उसके जीवन की हर ऋतू को साथ देना, उसकी वृद्धावस्था व सम्पूर्ण जीवन लीला का साक्षी बनना ये सब एक पीपल ने किया निश्छलता से. कमाल की रचना.
जवाब देंहटाएंऐसी ही एक कविता मेरी भी है लेकिन वृक्ष उसमे बरगद है ;) कभी समय आया तो ब्लॉग पर साझा करेंगे.
पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और
रोहितास जी ... जरूर कीजिये साझा अच्छा लगेगा पढ़ पढ़ ...
हटाएंआपका बहुत आभार ...
बेहद उम्दा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव आसान शब्दो मे व्यक्त कर दिए हैं सर्।
कविता का प्रवाह भी उत्तम कोटि का हैं मानो एक ही बार मे पूरी रचना लिख दी गयी हो,क़लम उठाना प्रतीत नही होता।
शरद, शिशिर हेमंत
गीष्म बैसाखी वर्षा
ऋतु परिवर्तन प्रतिपल पीपल देख रहा
सबसे प्यारी पंक्ति।
बहुत आभार है आपका ज़फर भाई ...
हटाएंजब कवि-मन दृष्टा बन जाता है ......
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंatyant sundar apratim
जवाब देंहटाएंबहुत आभार विकेश जी ...
हटाएंदिल को छूती लाज़वाब अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंजीवंत प्रवाह ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंपञ्च-तत्व अग्नि तर्पण
जवाब देंहटाएंजीवन अर्पण
मुक्त आत्मा निश्छल पीपल देख रहा....बहुत से नए और ताज़े शब्द आये हैं इस रचना में ! आप भले आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं लेकिन हिंदी के प्रोफेसर भी होते तो हिंदी का सौभाग्य होता सर !! सुन्दर रचना
हिन्दी बहुत बड़ी है सर ... अभी तो ए बी सी डी भी नहीं जान पाए इस अथाह सागर की ...
हटाएंआपका आभार ...