स्वप्न मेरे: जून 2025

शुक्रवार, 27 जून 2025

उम्र मुड़ के न आएगी पर साल में …

भूल जाओ इसे रख के पाताल में.

ग़म न बाँटों किसी से किसी हाल में.

जीत ख़रगोश की हो या कछुए की हो,
फ़र्क़ होता है दोनों की पर चाल में.

धर्म, दौलत, नियंत्रण, ये सत्ता, नशा,
सब फ़रेबी हैं आना न तुम चाल में.

रिश्ते-नाते, मुहब्बत, ये बन्धन, वचन,
मौज लोगे न आओगे गर जाल में.

आप चाहें न चाहें ये बस में नहीं,
मिल ही जाएँगे कंकड़ हर इक दाल में.

अल-सुबह उठ के गुलशन में आए हो क्यूँ,
फूल खिलने लगे हैं हर इक डाल में.

तैरना-डूबना तो है सब को यहाँ,
जब उतरना हैं जीवन के इस ताल में.

साल-दर-साल आता है मुड़-मुड़ के कुछ,
उम्र मुड़ के न आएगी पर साल में.

शनिवार, 21 जून 2025

किरन जब खिलखिलाती है तेरी तब याद आती है …

ये सिगरेट-चाय-तितली-गुफ्तगू सब याद आती है.
तेरी आग़ोश में गुज़री हुई शब याद आती है.

इसी ख़ातिर नहीं के तू ही मालिक है जगत भर का,
मुझे हर वक़्त वैसे भी तेरी रब याद आती है.

मेरे चेहरे पे गहरी चोट का इक दाग है ऐसा,
ये दर्पण देख लेता हूँ तेरी जब याद आती है.

न थी उम्मीद कोई ज़िन्दगी से पर ये सोचा था,
न आएगी कभी भी याद पर अब याद आती है.

सफ़र आसान यूँ होता नहीं है ज़िंदगी भर का,
मुहब्बत में रहो तो दर्द की कब याद आती है.

किसी का अक्स जो तुम ढूँढती रहती हो बादल में,
कहूँ शब्दों में सीधे से तो मतलब याद आती है.

धरा पर धूप उतर आती है ले के रूप की आभा,
किरन जब खिल-खिलाती है तेरी तब याद आती है.

शनिवार, 14 जून 2025

उठा के हाथ में कब से मशाल बैठा हूँ ...

किसी के इश्क़ में यूँ सालों-साल बैठा हूँ.
में कब से दिल में छुपा के मलाल बैठा हूँ.

नहीं है कल का भरोसा किसी का पर फिर भी,
ज़रूरतों का सभी ले के माल बैठा हूँ.

मुझे यकीन है पहचान है ज़रा मुश्किल,
लपेट कर में सलीक़े से खाल बैठा हूँ.

उदास रात की स्याही से डर नहीं लगता,
हरा भी लाल भी ले कर गुलाल बैठा हूँ.

नहीं है इश्क़ तो फिर बोल क्यों नहीं देते,
बिना ही बात में वहमों को पाल बैठा हूँ.

कभी तो झुण्ड परिन्दों का फँस ही जाएगा,
बहेलिया हूँ में फैला के जाल बैठा हूँ.

मुसाफिरों से ये कह दो के अब निकल जाएँ,
उठा के हाथ में कब से मशाल बैठा हूँ.

शनिवार, 7 जून 2025

बारिश ...

शाम बारिश भोर बारिश.
कर रही है बोर बारिश.

तुम कहाँ जाओगी जाना,
हो रही घनघोर बारिश.

टप टपा टप, टप टपा टप,
शोर ही बस शोर बारिश.

मार डाले लोग कितने,
उफ़ ये आदम-खोर बारिश.

डूब जाए ना सभी कुछ,
पृथ्वी के हर छोर बारिश.

कुछ हवाएं चल रही हैं,
होगी अब कमज़ोर बारिश.

दिल भिगोया मिल गए हम,
या ख़ुदा चित-चोर बारिश.