दूर तक रेत पर
नहीं गिरी थीं बारिश की बूँद
पर थी मिट्टी की सोंधी महक
छू रहा था बदन को
नमी का गहरा एहसास ...
जाने पहचाने
ताज़ा क़दमों के निशान
बेतरतीब बिखरे पड़े थे
पीले समुंदर की
ठहरी हुई लहरों पर ...
क्या सच में प्रेम वहाँ रोता है
जहां कोई नहीं होता ...
बहुत ही गहरा। हृदयस्पर्शीय... सच में प्रेम वहा रोता है जहां कोई नहीं होता... भावनाओं को कोई नही समझता यहां, मजाक बनाने वाले बहुत है यहां।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण रचना बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 1 नवंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम
वाह! सच कहा दिगंबर जी ,प्रेम वहीं रोता है ...........
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर,गहन हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
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