स्वप्न मेरे: हो न तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते ...

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

हो न तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते ...

अनसुनी कर के जो हम वक़्त को टाले जाते.
घर से जाते न तो चुपचाप निकाले जाते.

ये तो बस आपने पहचान लिया था वरना,
दर्द तो दूर न ये पाँव के छाले जाते.

शुक्र है वक़्त पे बरसात ने रख ली इज़्ज़त,
देर तक अश्क़ न पलकों में सम्भाले जाते.

मौंके पर डँसना जो मंज़ूर न होता उनको,
आस्तीनों में कभी सांप न पाले जाते.

चंद यादें जो परेशान किया करती हैं,
बस में होता जो हमारे तो उठा ले जाते.

आईना बन के हक़ीक़त न दिखाते सब को,
हम भी बदनाम रिसालों में उछाले जाते.

हमको हर सच की तरफ़ डट के खड़ा रहना था,
हो न तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते.


23 टिप्‍पणियां:

  1. वाह उत्कृष्ट सृजन।
    शुक्र है वक्त पे बरसात ने रख ली इज्जत.….सम्हाले जाते. 👌👌
    लाजवाब!
    हर बार की तरह बेमिसाल।

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  2. शुक्र है वक़्त पे बरसात ने रख ली इज़्ज़त,
    देर तक अश्क़ न पलकों में सम्भाले जाते.


    वाह सर् जी क्या लाज़वाब शेर कहा है।

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  3. वाह!वाह!गज़ब के शेर 👌
    शुक्र है वक़्त पे बरसात ने रख ली इज़्ज़त,
    देर तक अश्क़ न पलकों में सम्भाले जाते.. वाह!

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  4. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल नासवा जी ।

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  5. सदैव की तरह ग़ज़लों की श्रृंखला में एक और नायाब ग़ज़ल रुपी मोती । बेहतरीन भावो से सम्पन्न गहन सृजन ।

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  6. मौंके पर डँसना जो मंज़ूर न होता उनको,
    आस्तीनों में कभी सांप न पाले जाते.
    वाह, सच कहा बिना फायदे के कुछ नहीं होता
    बहुत खूब..

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  7. अनसुनी कर के जो हम वक़्त को टाले जाते.
    घर से जाते न तो चुपचाप निकाले जाते.
    चुपचाप या धक्के मारकर!
    वाह!!!
    क्या बात...
    शुक्र है वक़्त पे बरसात ने रख ली इज़्ज़त,
    देर तक अश्क़ न पलकों में सम्भाले जाते.
    कमाल की गजल...एक से बढ़कर एक शेर
    वाह वाह...

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  8. बेहतरीन रचना सर।
    हर बंध बेहद लाज़वाब है।
    सादर।

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  9. हमको हर सच की तरफ़ डट के खड़ा रहना था,
    हो न तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते...जीवन से जुड़ा बहुत सुंदर शेर । पूरी गज़ल लाजवाब ।

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  10. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 19 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  11. हमको हर सच की तरफ़ डट के खड़ा रहना था,
    हो न तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते.
    बहुत सुंदर।

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  12. हमको हर सच की तरफ़ डट के खड़ा रहना था,
    हो न तलवार तो हम ढाल में ढाले जाते.

    वाह क्या बात है बहुत ही उम्दा व शानदार...

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  13. शुक्र है वक़्त पे बरसात ने रख ली इज़्ज़त,
    देर तक अश्क़ न पलकों में सम्भाले जाते.

    मुझे इसीलिए बारिश पसंद है ....
    लाजवाब ग़ज़ल

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  14. आपको जन्‍मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

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  15. शुक्र है वक़्त पे बरसात ने रख ली इज़्ज़त,
    देर तक अश्क़ न पलकों में सम्भाले जाते.......​बहुत शानदार और प्रभावी !! जन्मदिन की अनेक अनेक शुभकामनाएं सर , आप हमेशा ऐसे ही लिखते रहे यही कामना है

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है