स्वप्न मेरे: पिचकारियाँ
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सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

हुस्न की मक्कारियाँ चारों तरफ हैं ...

गर्दनों पे आरियाँ चारों तरफ हैं
खून की पिचकारियाँ चारों तरफ हैं

ना किलेबंदी करें तो क्या करें हम
युद्ध की तैयारियाँ चारों तरफ हैं

जिस तरफ देखो तबाही ही तबाही
वक़्त की दुश्वारियाँ चारों तरफ हैं

गौर से रखना कदम दामन बचाना
राख में चिंगारियाँ चारों तरफ हैं

जेब में है माल तो फिर इश्क़ करना
हुस्न की मक्कारियाँ चारों तरफ हैं