घिस गए जो आईने वो तोड़ दो.
बुझ गए जो दीप मिल के फोड़ दो.
धूप ने आते ही बादल से कहा,
तुम तो बीडू रास्ता ये छोड़ दो.
तंग होते जा रहे हैं शहर सब,
गाँव की पगडंडियों को मोड़ दो.
दर्द हो महसूस बोले ही बिना,
दिल से दिल के तार ऐसे जोड़ दो.
जोड़ने की बात फिर से कर सके,
फिर सियासत को नया गठ-जोड़ दो.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में मंगलवार, 28 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंप्रयोगात्मक ग़ज़ल...बीडूू...अतिउत्तम...👏👏👏
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबदलाव की लहर चलनी ही चाहिए,, पुराने ढर्रे पर कब चलते रहेंगे,,,बहुत खूब,,
जवाब देंहटाएंधूप ने आते ही बादल से कहा,
जवाब देंहटाएंतुम तो बीडू रास्ता ये छोड़ दो.
देशज शब्द सृजन को कहीं न कहीं रोचक बना देते हैं । सुन्दर सृजन ।
तोड़-फोड़ से बात शुरू हुई थी पर गठ-जोड़ पर ख़त्म हुई, बढ़िया है
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंक्या बात है
जवाब देंहटाएंयार, कमाल की बात कही है आपने। हम अक्सर पुराने दर्द, पुराने रिश्तों और पुराने सोच को ढोते रहते हैं, जबकि आगे बढ़ने का रास्ता वही खोलता है जो हम छोड़ देते हैं। दिल से दिल जोड़ने वाली लाइन सबसे खूबसूरत लगी, क्योंकि आज की जिंदगी में यही सबसे ज़रूरी है।
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